॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट०४)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
समाहितेन मनसा संस्मरन् पुरुषं परम् ।
उवाचोत्फुल्लवदनो देवान्स भगवान्परः ॥ २० ॥
अहं भवो यूयमथोऽसुरादयो
मनुष्यतिर्यग् द्रुमघर्मजातयः ।
यस्यावतारांशकलाविसर्जिता
व्रजाम सर्वे
शरणं तमव्ययम् ॥ २१ ॥
न यस्य वध्यो न च रक्षणीयो
नोपेक्षणीयादरणीयपक्षः ।
अथापि सर्गस्थितिसंयमार्थं
धत्ते
रजःसत्त्वतमांसि काले ॥ २२ ॥
अयं च तस्य स्थितिपालनक्षणः
सत्त्वं जुषाणस्य भवाय देहिनाम् ।
तस्माद् व्रजामः शरणं जगद्गुरुं
स्वानां स नो
धास्यति शं सुरप्रियः ॥ २३ ॥
श्रीशुक उवाच -
इत्याभाष्य सुरान्वेधाः सह देवैररिन्दम ।
अजितस्य पदं साक्षात् जगाम तमसः परम् ॥ २४ ॥
तत्रादृष्टस्वरूपाय श्रुतपूर्वाय वै विभो ।
स्तुतिमब्रूत दैवीभिः गीर्भिस्त्ववहितेन्द्रियः ॥ २५ ॥
समर्थ ब्रह्माजीने अपना मन एकाग्र करके परम पुरुष भगवान्का
स्मरण किया;
फिर थोड़ी देर रुककर प्रफुल्लित मुखसे देवताओंको सम्बोधित
करते हुए कहा ॥ २० ॥ ‘देवताओ ! मैं, शङ्करजी,
तुमलोग तथा असुर, दैत्य,
मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्ष और स्वेदज आदि समस्त प्राणी जिनके विराट् रूपके एक
अत्यन्त स्वल्पातिस्वल्प अंशसे रचे गये हैं— हमलोग उन अविनाशी प्रभुकी ही शरण ग्रहण करें ॥ २१ ॥ यद्यपि उनकी दृष्टिमें न
कोई वधका पात्र है और न रक्षाका, उनके लिये न
तो कोई उपेक्षणीय है न कोई आदरका पात्र ही—फिर भी सृष्टि,
स्थिति और प्रलयके लिये समय-समयपर वे रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुणको स्वीकार किया करते हैं ॥ २२ ॥
उन्होंने इस समय प्राणियोंके कल्याणके लिये सत्त्वगुणको स्वीकार कर रखा है। इसलिये
यह जगत् की स्थिति और रक्षाका अवसर है। अत: हम सब उन्हीं जगद्गुरु परमात्माकी शरण
ग्रहण करते हैं। वे देवताओंके प्रिय हैं और देवता उनके प्रिय। इसलिये हम निजजनोंका
वे अवश्य ही कल्याण करेंगे ॥ २३ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! देवताओंसे यह कहकर ब्रह्माजी देवताओंको साथ लेकर भगवान् अजित के
निजधाम वैकुण्ठमें गये। वह धाम तमोमयी प्रकृतिसे परे है ॥ २४ ॥ इन लोगोंने भगवान्के
स्वरूप और धामके सम्बन्धमें पहलेसे ही बहुत कुछ सुन रखा था, परंतु वहाँ जानेपर उन लोगोंको कुछ दिखायी न पड़ा। इसलिये
ब्रह्माजी एकाग्र मनसे वेदवाणीके द्वारा भगवान्की स्तुति करने लगे ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌹🌼🍂जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंOm namo bhagvate vasudevai!
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
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