बुधवार, 25 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना

तस्याः श्रियस्त्रिजगतो जनको जनन्या
वक्षो निवासमकरोत्परमं विभूतेः
श्रीः स्वाः प्रजाः सकरुणेन निरीक्षणेन
यत्र स्थितैधयत साधिपतींस्त्रिलोकान् ॥ २५ ॥
शङ्खतूर्यमृदङ्गानां वादित्राणां पृथुः स्वनः
देवानुगानां सस्त्रीणां नृत्यतां गायतामभूत् ॥ २६ ॥
ब्रह्मरुद्रा ङ्गिरोमुख्याः सर्वे विश्वसृजो विभुम्
ईडिरेऽवितथैर्मन्त्रैस्तल्लिङ्गैः पुष्पवर्षिणः ॥ २७ ॥
श्रियावलोकिता देवाः सप्रजापतयः प्रजाः
शीलादिगुणसम्पन्ना लेभिरे निर्वृतिं पराम् ॥ २८ ॥
निःसत्त्वा लोलुपा राजन्निरुद्योगा गतत्रपाः
यदा चोपेक्षिता लक्ष्म्या बभूवुर्दैत्यदानवाः ॥ २९ ॥
अथासीद्वारुणी देवी कन्या कमललोचना
असुरा जगृहुस्तां वै हरेरनुमतेन ते ॥ ३० ॥

जगत्पिता भगवान्‌ ने जगज्जननी, समस्त सम्पत्तियों की अधिष्ठातृ-देवता श्रीलक्ष्मीजी को अपने वक्ष:स्थलपर ही सर्वदा निवास करनेका स्थान दिया। लक्ष्मीजी ने वहाँ विराजमान होकर अपनी करुणाभरी चितवन से तीनों लोक, लोकपति और अपनी प्यारी प्रजा की अभिवृद्धि की ॥ २५ ॥ उस समय शङ्ख, तुरही, मृदङ्ग आदि बाजे बजने लगे। गन्धर्व अप्सराओंके साथ नाचने-गाने लगे। इससे बड़ा भारी शब्द होने लगा ॥ २६ ॥ ब्रह्मा, रुद्र, अङ्गिरा आदि सब प्रजापति पुष्पवर्षा करते हुए भगवान्‌के गुण, स्वरूप और लीला आदिके यथार्थ वर्णन करनेवाले मन्त्रोंसे उनकी स्तुति करने लगे ॥ २७ ॥ देवता, प्रजापति और प्रजासभी लक्ष्मीजीकी कृपादृष्टिसे शील आदि उत्तम गुणोंसे सम्पन्न होकर बहुत सुखी हो गये ॥ २८ ॥ परीक्षित्‌ ! इधर जब लक्ष्मीजीने दैत्य और दानवोंकी उपेक्षा कर दी, तब वे लोग निर्बल, उद्योगरहित, निर्लज्ज और लोभी हो गये ॥ २९ ॥ इसके बाद समुद्रमन्थन करने पर कमलनयनी कन्या के रूप में वारुणी देवी प्रकट हुर्ईं। भगवान्‌ की अनुमति से दैत्यों ने उसे ले लिया ॥ ३० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




7 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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  4. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏🙏

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  5. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏

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  6. 🌸🌿🍂जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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