गुरुवार, 26 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना

अथोदधेर्मथ्यमानात्काश्यपैरमृतार्थिभिः
उदतिष्ठन्महाराज पुरुषः परमाद्भुतः ॥ ३१ ॥
दीर्घपीवरदोर्दण्डः कम्बुग्रीवोऽरुणेक्षणः
श्यामलस्तरुणः स्रग्वी सर्वाभरणभूषितः ॥ ३२ ॥
पीतवासा महोरस्कः सुमृष्टमणिकुण्डलः
स्निग्धकुञ्चितकेशान्त सुभगः सिंहविक्रमः ॥ ३३ ॥
अमृतापूर्णकलसं बिभ्रद्वलयभूषितः
स वै भगवतः साक्षाद्विष्णोरंशांशसम्भवः ॥ ३४ ॥
धन्वन्तरिरिति ख्यात आयुर्वेददृगिज्यभाक्
तमालोक्यासुराः सर्वे कलसं चामृताभृतम् ॥ ३५ ॥
लिप्सन्तः सर्ववस्तूनि कलसं तरसाहरन्
नीयमानेऽसुरैस्तस्मिन्कलसेऽमृतभाजने ॥ ३६ ॥
विषण्णमनसो देवा हरिं शरणमाययुः
इति तद्दैन्यमालोक्य भगवान्भृत्यकामकृत्
मा खिद्यत मिथोऽर्थं वः साधयिष्ये स्वमायया ॥ ३७ ॥

तदनन्तर महाराज ! देवता और असुरों ने अमृतकी इच्छा से जब और भी समुद्रमन्थन किया, तब उसमें से एक अत्यन्त अलौकिक पुरुष प्रकट हुआ ॥ ३१ ॥ उसकी भुजाएँ लंबी एवं मोटी थीं। उसका गला शङ्ख के समान उतार-चढ़ाववाला था और आँखोंमें लालिमा थी। शरीरका रंग बड़ा सुन्दर साँवला-साँवला था। गलेमें माला, अङ्ग-अङ्ग सब प्रकार के आभूषणोंसे सुसज्जित, शरीरपर पीताम्बर, कानोंमें चमकीले मणियोंके कुण्डल, चौड़ी छाती, तरुण अवस्था, सिंहके समान पराक्रम, अनुपम सौन्दर्य, चिकने और घुँघराले बाल लहराते हुए उस पुरुषकी छबि बड़ी अनोखी थी ॥ ३२-३३ ॥ उसके हाथोंमें कंगन और अमृतसे भरा हुआ कलश था। वह साक्षात् विष्णुभगवान्‌के अंशांश अवतार थे ॥ ३४ ॥ वे ही आयुर्वेदके प्रवर्तक और यज्ञभोक्ता धन्वन्तरिके नामसे सुप्रसिद्ध हुए। जब दैत्योंकी दृष्टि उनपर तथा उनके हाथमें अमृतसे भरे हुए कलश- पर पड़ी, तब उन्होंने शीघ्रतासे बलात् उस अमृतके कलशको छीन लिया। वे तो पहलेसे ही इस ताकमें थे कि किसी तरह समुद्रमन्थनसे निकली हुई सभी वस्तुएँ हमें मिल जायँ। जब असुर उस अमृतसे भरे कलशको छीन ले गये, तब देवताओंका मन विषादसे भर गया। अब वे भगवान्‌की शरणमें आये। उनकी दीन दशा देखकर भक्तवाञ्छाकल्पतरु भगवान्‌ने कहा—‘देवताओ ! तुमलोग खेद मत करो। मैं अपनी मायासे उनमें आपसकी फूट डालकर अभी तुम्हारा काम बना देता हूँ॥ ३५३७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



5 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷🥀💐जय श्री हरि: !! 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  3. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏

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