॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
राजा बलि की स्वर्गपर विजय
रम्यामुपवनोद्यानैः श्रीमद्भिर्नन्दनादिभिः
कूजद्विहङ्गमिथुनैर्गायन्मत्तमधुव्रतैः ॥ १२ ॥
प्रवालफलपुष्पोरु भारशाखामरद्रुमैः
हंससारसचक्राह्व कारण्डवकुलाकुलाः
नलिन्यो यत्र क्रीडन्ति प्रमदाः सुरसेविताः ॥ १३ ॥
आकाशगङ्गया देव्या वृतां परिखभूतया
प्राकारेणाग्निवर्णेन साट्टालेनोन्नतेन च ॥ १४ ॥
रुक्मपट्टकपाटैश्च द्वारैः स्फटिकगोपुरैः
जुष्टां विभक्तप्रपथां विश्वकर्मविनिर्मिताम् ॥ १५ ॥
सभाचत्वररथ्याढ्यां विमानैर्न्यर्बुदैर्युताम्
शृङ्गाटकैर्मणिमयैर्वज्रविद्रुमवेदिभिः ॥ १६ ॥
यत्र नित्यवयोरूपाः श्यामा विरजवाससः
भ्राजन्ते रूपवन्नार्यो ह्यर्चिर्भिरिव वह्नयः ॥ १७ ॥
देवताओंकी राजधानी अमरावतीमें बड़े सुन्दर-सुन्दर नन्दन वन
आदि उद्यान और उपवन हैं। उन उद्यानों और उपवनोंमें पक्षियोंके जोड़े चहकते रहते
हैं। मधुलोभी भौंरे मतवाले होकर गुनगुनाते रहते हैं ॥ १२ ॥ लाल-लाल नये-नये पत्तों, फलों और पुष्पोंसे कल्पवृक्षोंकी शाखाएँ लदी रहती हैं।
वहाँके सरोवरोंमें हंस,
सारस, चकवे और
बतखोंकी भीड़ लगी रहती है। उन्हींमें देवताओंके द्वारा सम्मानित देवाङ्गनाएँ
जलक्रीडा करती रहती हैं ॥ १३ ॥ ज्योतिर्मय आकाशगङ्गाने खाईकी भाँति अमरावतीको
चारों ओरसे घेर रखा है। उसके चारों ओर बहुत ऊँचा सोनेका परकोटा बना हुआ है, जिसमें स्थान-स्थानपर बड़ी-बड़ी अटारियाँ बनी हुई हैं ॥ १४
॥ सोनेके किवाड़ द्वार-द्वारपर लगे हुए हैं और स्फटिकमणिके गोपुर (नगरके बाहरी
फाटक) हैं। उसमें अलग-अलग बड़े-बड़े राजमार्ग हैं। स्वयं विश्वकर्माने ही उस पुरीका
निर्माण किया है ॥ १५ ॥ सभाके स्थान, खेलके चबूतरे और रथ चलनेके बड़े-बड़े मार्गोंसे वह शोभायमान है। दस करोड़
विमान उसमें सर्वदा विद्यमान रहते हैं और मणियोंके बड़े-बड़े चौराहे एवं हीरे और
मूँगेकी वेदियाँ बनी हुई हैं ॥ १६ ॥ वहाँकी स्त्रियाँ सर्वदा सोलह वर्षकी-सी रहती
हैं,
उनका यौवन और सौन्दर्य स्थिर रहता है। वे निर्मल वस्त्र
पहनकर अपने रूप की छटासे इस प्रकार देदीप्यमान होती हैं, जैसे अपनी ज्वालाओं से अग्नि ॥ १७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
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जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं💐🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण