शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

राजा बलि की स्वर्गपर विजय

सुरस्त्रीकेशविभ्रष्ट नवसौगन्धिकस्रजाम्
यत्रामोदमुपादाय मार्ग आवाति मारुतः ॥ १८ ॥
हेमजालाक्षनिर्गच्छद्धूमेनागुरुगन्धिना
पाण्डुरेण प्रतिच्छन्न मार्गे यान्ति सुरप्रियाः ॥ १९ ॥
मुक्तावितानैर्मणिहेमकेतुभि-
र्नानापताकावलभीभिरावृताम्
शिखण्डिपारावतभृङ्गनादितां
वैमानिकस्त्रीकलगीतमङ्गलाम् ॥ २० ॥
मृदङ्गशङ्खानकदुन्दुभिस्वनैः
सतालवीणामुरजेष्टवेणुभिः
नृत्यैः सवाद्यैरुपदेवगीतकै-
र्मनोरमां स्वप्रभया जितप्रभाम् ॥ २१ ॥
यां न व्रजन्त्यधर्मिष्ठाः खला भूतद्रुहः शठाः
मानिनः कामिनो लुब्धा एभिर्हीना व्रजन्ति यत् ॥ २२ ॥
तां देवधानीं स वरूथिनीपति-
र्बहिः समन्ताद्रुरुधे पृतन्यया
आचार्यदत्तं जलजं महास्वनं
दध्मौ प्रयुञ्जन्भयमिन्द्रयोषिताम् ॥ २३ ॥

(अमरावती में) देवाङ्गनाओं के जूड़े से गिरे हुए नवीन सौगन्धित पुष्पोंकी सुगन्ध लेकर वहाँ के मार्गोंमें मन्द-मन्द हवा चलती रहती है ॥ १८ ॥ सुनहली खिड़कियोंमें से अगर की सुगन्ध से युक्त सफेद धूआँ निकल-निकलकर वहाँके मार्गोंको ढक दिया करता है। उसी मार्गसे देवाङ्गनाएँ जाती-आती हैं ॥ १९ ॥ स्थान-स्थानपर मोतियोंकी झालरोंसे सजाये हुए चँदोवे तने रहते हैं। सोनेकी मणिमय पताकाएँ फहराती रहती हैं। छज्जोंपर अनेकों झंडियाँ लहराती रहती हैं। मोर, कबूतर और भौंरे कलगान करते रहते हैं। देवाङ्गनाओंके मधुर संगीतसे वहाँ सदा ही मङ्गल छाया रहता है ॥ २० ॥ मृदङ्ग, शङ्ख, नगारे, ढोल, वीणा, वंशी, मँजीरे और ऋष्टियाँ बजती रहती हैं। गन्धर्व बाजोंके साथ गाया करते हैं और अप्सराएँ नाचा करती हैं। इनसे अमरावती इतनी मनोहर जान पड़ती है, मानो उसने अपनी छटासे छटाकी अधिष्ठात्री देवीको भी जीत लिया है ॥ २१ ॥ उस पुरीमें अधर्मी, दुष्ट, जीवद्रोही, ठग, मानी, कामी और लोभी नहीं जा सकते। जो इन दोषोंसे रहित हैं, वे ही वहाँ जाते हैं ॥ २२ ॥ असुरोंकी सेनाके स्वामी राजा बलिने अपनी बहुत बड़ी सेनासे बाहरकी ओर सब ओरसे अमरावतीको घेर लिया और इन्द्रपत्नियोंके हृदयमें भयका सञ्चार करते हुए उन्होंने शुक्राचार्यजीके दिये हुए महान् शङ्खको बजाया। उस शङ्ख की ध्वनि सर्वत्र फैल गयी ॥ २३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  2. 🌹🙏 जय श्री हरि ।🙏🌹

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  3. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  4. 🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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