॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
देवासुर-संग्राम
शिरोभिरुद्धूतकिरीटकुण्डलैः
संरम्भदृग्भिः परिदष्टदच्छदैः
महाभुजैः साभरणैः सहायुधैः
सा प्रास्तृता भूः करभोरुभिर्बभौ ॥ ३९ ॥
कबन्धास्तत्र चोत्पेतुः पतितस्वशिरोऽक्षिभिः
उद्यतायुधदोर्दण्डैराधावन्तो भटान्मृधे ॥ ४० ॥
तदनन्तर लड़ाई का मैदान कटे हुए सिरों से भर गया। किसी के
मुकुट और कुण्डल गिर गये थे, तो किसीकी
आँखोंसे क्रोधकी मुद्रा प्रकट हो रही थी। किसी-किसीने अपने दाँतोंसे होंठ दबा रखा
था। बहुतोंकी आभूषणों और शस्त्रोंसे सुसज्जित लंबी-लंबी भुजाएँ कटकर गिरी हुई थीं
और बहुतोंकी मोटी-मोटी जाँघे कटी हुई पड़ी थीं। इस प्रकार वह रणभूमि बड़ी भीषण दीख
रही थी ॥ ३९ ॥ तब वहाँ बहुत-से धड़ अपने कटकर गिरे हुए सिरोंके नेत्रोंसे देखकर
हाथोंमें हथियार उठा वीरों की ओर दौडऩे और उछलने लगे ॥ ४० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय