॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश
श्रीशुक उवाच -
एवं अभ्यर्थितोऽदित्या कस्तामाह स्मयन्निव ।
अहो मायाबलं विष्णोः स्नेहबद्धं इदं जगत् ॥ १८ ॥
क्व देहो भौतिकोऽनात्मा क्व चात्मा प्रकृतेः परः ।
कस्य के पतिपुत्राद्या मोह एव हि कारणम् ॥ १९ ॥
उपतिष्ठस्व पुरुषं भगवन्तं जनार्दनम् ।
सर्वभूतगुहावासं वासुदेवं जगद्गुरुम् ॥ २० ॥
स विधास्यति ते कामान् हरिर्दीनानुकंपनः ।
अमोघा भगवद्भक्तिः न इतरेति मतिर्मम ॥ २१ ॥
अदितिरुवाच -
केनाहं विधिना ब्रह्मन् उपस्थास्ये जगत्पतिम् ।
यथा मे सत्यसंकल्पो विदध्यात् स मनोरथम् ॥ २२ ॥
आदिश त्वं द्विजश्रेष्ठ विधिं तदुपधावनम् ।
आशु तुष्यति मे देवः सीदन्त्याः सह पुत्रकैः ॥ २३ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—इस प्रकार अदितिने जब कश्यपजीसे प्रार्थना की, तब वे कुछ विस्मित-से होकर बोले—‘बड़े आश्चर्यकी बात है। भगवान्की माया भी कैसी प्रबल है ! यह सारा जगत्
स्नेहकी रज्जुसे बँधा हुआ है ॥ १८ ॥ कहाँ यह पञ्चभूतोंसे बना हुआ अनात्मा शरीर और
कहाँ प्रकृतिसे परे आत्मा ?
न किसीका कोई पति है, न पुत्र है और न तो सम्बन्धी ही है। मोह ही मनुष्यको नचा रहा है ॥ १९ ॥ प्रिये
! तुम सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें विराजमान, अपने भक्तोंके दु:ख मिटानेवाले जगद्गुरु भगवान् वासुदेवकी आराधना करो ॥ २० ॥
वे बड़े दीनदयालु हैं। अवश्य ही श्रीहरि तुम्हारी कामनाएँ पूर्ण करेंगे। मेरा यह
दृढ़ निश्चय है कि भगवान्की भक्ति कभी व्यर्थ नहीं होती। इसके सिवा कोई दूसरा
उपाय नहीं है ॥ २१ ॥
अदितिने पूछा—भगवन् ! मैं जगदीश्वर भगवान्की आराधना किस प्रकार करूँ, जिससे वे सत्यसङ्कल्प प्रभु मेरा मनोरथ पूर्ण करें ॥ २२ ॥
पतिदेव ! मैं अपने पुत्रोंके साथ बहुत ही दु:ख भोग रही हूँ। जिससे वे शीघ्र ही
मुझपर प्रसन्न हो जायँ,
उनकी आराधनाकी वही विधि मुझे बतलाइये ॥ २३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishña
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएं🌹💖🌷जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण