सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश

श्रीशुक उवाच -
एवं अभ्यर्थितोऽदित्या कस्तामाह स्मयन्निव ।
अहो मायाबलं विष्णोः स्नेहबद्धं इदं जगत् ॥ १८ ॥
क्व देहो भौतिकोऽनात्मा क्व चात्मा प्रकृतेः परः ।
कस्य के पतिपुत्राद्या मोह एव हि कारणम् ॥ १९ ॥
उपतिष्ठस्व पुरुषं भगवन्तं जनार्दनम् ।
सर्वभूतगुहावासं वासुदेवं जगद्‍गुरुम् ॥ २० ॥
स विधास्यति ते कामान् हरिर्दीनानुकंपनः ।
अमोघा भगवद्‍भक्तिः न इतरेति मतिर्मम ॥ २१ ॥

अदितिरुवाच -
केनाहं विधिना ब्रह्मन् उपस्थास्ये जगत्पतिम् ।
यथा मे सत्यसंकल्पो विदध्यात् स मनोरथम् ॥ २२ ॥
आदिश त्वं द्विजश्रेष्ठ विधिं तदुपधावनम् ।
आशु तुष्यति मे देवः सीदन्त्याः सह पुत्रकैः ॥ २३ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंइस प्रकार अदितिने जब कश्यपजीसे प्रार्थना की, तब वे कुछ विस्मित-से होकर बोले—‘बड़े आश्चर्यकी बात है। भगवान्‌की माया भी कैसी प्रबल है ! यह सारा जगत् स्नेहकी रज्जुसे बँधा हुआ है ॥ १८ ॥ कहाँ यह पञ्चभूतोंसे बना हुआ अनात्मा शरीर और कहाँ प्रकृतिसे परे आत्मा ? न किसीका कोई पति है, न पुत्र है और न तो सम्बन्धी ही है। मोह ही मनुष्यको नचा रहा है ॥ १९ ॥ प्रिये ! तुम सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें विराजमान, अपने भक्तोंके दु:ख मिटानेवाले जगद्गुरु भगवान्‌ वासुदेवकी आराधना करो ॥ २० ॥ वे बड़े दीनदयालु हैं। अवश्य ही श्रीहरि तुम्हारी कामनाएँ पूर्ण करेंगे। मेरा यह दृढ़ निश्चय है कि भगवान्‌की भक्ति कभी व्यर्थ नहीं होती। इसके सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं है ॥ २१ ॥
अदितिने पूछाभगवन् ! मैं जगदीश्वर भगवान्‌की आराधना किस प्रकार करूँ, जिससे वे सत्यसङ्कल्प प्रभु मेरा मनोरथ पूर्ण करें ॥ २२ ॥ पतिदेव ! मैं अपने पुत्रोंके साथ बहुत ही दु:ख भोग रही हूँ। जिससे वे शीघ्र ही मुझपर प्रसन्न हो जायँ, उनकी आराधनाकी वही विधि मुझे बतलाइये ॥ २३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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  2. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  3. 🌹💖🌷जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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