॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश
अदितिरुवाच -
भद्रं द्विजगवां ब्रह्मन् धर्मस्यास्य जनस्य च ।
त्रिवर्गस्य परं क्षेत्रं गृहमेधिन् गृहा इमे ॥ ११ ॥
अग्नयोऽतिथयो भृत्या भिक्षवो ये च लिप्सवः ।
सर्वं भगवतो ब्रह्मन् अनुध्यानान्न रिष्यति ॥ १२ ॥
को नु मे भगवन् कामो न सम्पद्येत मानसः ।
यस्या भवान् प्रजाध्यक्ष एवं धर्मान् प्रभाषते ॥ १३ ॥
तवैव मारीच मनःशरीरजाः
प्रजा इमाः
सत्त्वरजस्तमोजुषः ।
समो भवान् तास्वसुरादिषु प्रभो
तथापि भक्तं
भजते महेश्वरः ॥ १४ ॥
तस्मादीश भजन्त्या मे श्रेयश्चिन्तय सुव्रत ।
हृतश्रियो हृतस्थानान् सपत्नैः पाहि नः प्रभो ॥ १५ ॥
परैर्विवासिता साहं मग्ना व्यसनसागरे ।
ऐश्वर्यं श्रीर्यशः स्थानं हृतानि प्रबलैर्मम ॥ १६ ॥
यथा तानि पुनः साधो प्रपद्येरन् ममात्मजाः ।
तथा विधेहि कल्याणं धिया कल्याणकृत्तम ॥ १७ ॥
अदितिने कहा—भगवन्! ब्राह्मण,
गौ,
धर्म और आपकी यह दासी—सब सकुशल हैं। मेरे स्वामी! यह गृहस्थ-आश्रम ही अर्थ, धर्म और कामकी साधनामें परम सहायक है ॥ ११ ॥ प्रभो! आपके
निरन्तर स्मरण और कल्याण-कामनासे अग्रि, अतिथि,
सेवक, भिक्षुक और
दूसरे याचकोंका भी मैंने तिरस्कार नहीं किया है ॥ १२ ॥ भगवन् ! जब आप-जैसे
प्रजापति मुझे इस प्रकार धर्म-पालन का उपदेश करते है; तब भला मेरे मन की ऐसी कौन-सी कामना है जो पूरी न हो जाय ? ॥ १३ ॥ आर्यपुत्र ! समस्त प्रजा—वह चाहे सत्त्वगुणी, रजोगुणी या तमोगुणी हो—आपकी ही सन्तान है। कुछ आपके संकल्पसे उत्पन्न हुए हैं और
कुछ शरीरसे ! भगवन् ! इसमें सन्देह नहीं कि आप सब सन्तानोंके प्रति—चाहे असुर हों या देवता—एक-सा भाव रखते हैं,
सम हैं। तथापि स्वयं परमेश्वर भी अपने भक्तोंकी अभिलाषा
पूर्ण किया करते हैं ॥ १४ ॥ मेरे स्वामी ! मैं आपकी दासी हूँ। आप मेरी भलाईके
सम्बन्धमें विचार कीजिये। मर्यादापालक प्रभो ! शत्रुओंने हमारी सम्पत्ति और रहनेका
स्थानतक छीन लिया है। आप हमारी रक्षा कीजिये ॥ १५ ॥ बलवान् दैत्योंने मेरे ऐश्वर्य, धन,
यश और पद छीन लिये हैं तथा हमें घरसे बाहर निकाल दिया है।
इस प्रकार मैं दु:खके समुद्रमें डूब रही हूँ ॥ १६ ॥ आपसे बढक़र हमारी भलाई करनेवाला
और कोई नहीं है। इसलिये मेरे हितैषी स्वामी ! आप सोच-विचारकर अपने संकल्पसे ही
मेरे कल्याण का कोई ऐसा उपाय कीजिये जिससे कि मेरे पुत्रोंको वे वस्तुएँ फिरसे
प्राप्त हो जायँ ॥ १७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंसत्य शिवम् सुंदरम 🌹🌹🌹🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌸💐🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण