रविवार, 20 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश

अदितिरुवाच -
भद्रं द्विजगवां ब्रह्मन् धर्मस्यास्य जनस्य च ।
त्रिवर्गस्य परं क्षेत्रं गृहमेधिन् गृहा इमे ॥ ११ ॥
अग्नयोऽतिथयो भृत्या भिक्षवो ये च लिप्सवः ।
सर्वं भगवतो ब्रह्मन् अनुध्यानान्न रिष्यति ॥ १२ ॥
को नु मे भगवन् कामो न सम्पद्येत मानसः ।
यस्या भवान् प्रजाध्यक्ष एवं धर्मान् प्रभाषते ॥ १३ ॥
तवैव मारीच मनःशरीरजाः
     प्रजा इमाः सत्त्वरजस्तमोजुषः ।
समो भवान् तास्वसुरादिषु प्रभो
     तथापि भक्तं भजते महेश्वरः ॥ १४ ॥
तस्मादीश भजन्त्या मे श्रेयश्चिन्तय सुव्रत ।
हृतश्रियो हृतस्थानान् सपत्‍नैः पाहि नः प्रभो ॥ १५ ॥
परैर्विवासिता साहं मग्ना व्यसनसागरे ।
ऐश्वर्यं श्रीर्यशः स्थानं हृतानि प्रबलैर्मम ॥ १६ ॥
यथा तानि पुनः साधो प्रपद्येरन् ममात्मजाः ।
तथा विधेहि कल्याणं धिया कल्याणकृत्तम ॥ १७ ॥

अदितिने कहाभगवन्! ब्राह्मण, गौ, धर्म और आपकी यह दासीसब सकुशल हैं। मेरे स्वामी! यह गृहस्थ-आश्रम ही अर्थ, धर्म और कामकी साधनामें परम सहायक है ॥ ११ ॥ प्रभो! आपके निरन्तर स्मरण और कल्याण-कामनासे अग्रि, अतिथि, सेवक, भिक्षुक और दूसरे याचकोंका भी मैंने तिरस्कार नहीं किया है ॥ १२ ॥ भगवन् ! जब आप-जैसे प्रजापति मुझे इस प्रकार धर्म-पालन का उपदेश करते है; तब भला मेरे मन की ऐसी कौन-सी कामना है जो पूरी न हो जाय ? ॥ १३ ॥ आर्यपुत्र ! समस्त प्रजावह चाहे सत्त्वगुणी, रजोगुणी या तमोगुणी होआपकी ही सन्तान है। कुछ आपके संकल्पसे उत्पन्न हुए हैं और कुछ शरीरसे ! भगवन् ! इसमें सन्देह नहीं कि आप सब सन्तानोंके प्रतिचाहे असुर हों या देवताएक-सा भाव रखते हैं, सम हैं। तथापि स्वयं परमेश्वर भी अपने भक्तोंकी अभिलाषा पूर्ण किया करते हैं ॥ १४ ॥ मेरे स्वामी ! मैं आपकी दासी हूँ। आप मेरी भलाईके सम्बन्धमें विचार कीजिये। मर्यादापालक प्रभो ! शत्रुओंने हमारी सम्पत्ति और रहनेका स्थानतक छीन लिया है। आप हमारी रक्षा कीजिये ॥ १५ ॥ बलवान् दैत्योंने मेरे ऐश्वर्य, धन, यश और पद छीन लिये हैं तथा हमें घरसे बाहर निकाल दिया है। इस प्रकार मैं दु:खके समुद्रमें डूब रही हूँ ॥ १६ ॥ आपसे बढक़र हमारी भलाई करनेवाला और कोई नहीं है। इसलिये मेरे हितैषी स्वामी ! आप सोच-विचारकर अपने संकल्पसे ही मेरे कल्याण का कोई ऐसा उपाय कीजिये जिससे कि मेरे पुत्रोंको वे वस्तुएँ फिरसे प्राप्त हो जायँ ॥ १७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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