ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
वामन भगवान् का प्रकट होकर
राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना
दृष्ट्वादितिस्तं
निजगर्भसम्भवं
परं
पुमांसं मुदमाप विस्मिता
गृहीतदेहं
निजयोगमायया
प्रजापतिश्चाह
जयेति विस्मितः ॥ ११ ॥
यत्तद्वपुर्भाति
विभूषणायुधै-
रव्यक्तचिद्व्यक्तमधारयद्धरिः
बभूव
तेनैव स वामनो वटुः
सम्पश्यतोर्दिव्यगतिर्यथा
नटः ॥ १२ ॥
जब अदितिने अपने गर्भसे प्रकट हुए परम पुरुष परमात्माको
देखा,
तो वह अत्यन्त आश्चर्य- चकित और परमानन्दित हो गयी।
प्रजापति कश्यपजी भी भगवान्को अपनी योगमायासे शरीर धारण किये हुए देख विस्मित हो
गये और कहने लगे ‘जय हो ! जय हो’ ॥ ११ ॥ परीक्षित् ! भगवान् स्वयं अव्यक्त एवं चित्स्वरूप हैं। उन्होंने जो
परम कान्तिमय आभूषण एवं आयुधोंसे युक्त वह शरीर ग्रहण किया था, उसी शरीरसे, कश्यप और अदितिके देखते-देखते वामन ब्रह्मचारीका रूप धारण कर लिया—ठीक वैसे ही, जैसे नट अपना वेष बदल ले। क्यों न हो, भगवान्की लीला तो अद्भुत है ही ॥ १२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं🌷🍂💖जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं