ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
वामन भगवान् का प्रकट होकर
राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना
श्रोणायां
श्रवणद्वादश्यां मुहूर्तेऽभिजिति प्रभुः
सर्वे
नक्षत्रताराद्याश्चक्रुस्तज्जन्म दक्षिणम् ॥ ५ ॥
द्वदश्यां
सवितातिष्ठमध्यन्दिनगतो नृप
विजयानाम
सा प्रोक्ता यस्यां जन्म विदुर्हरेः ॥ ६ ॥
शङ्खदुन्दुभयो
नेदुर्मृदङ्गपणवानकाः
चित्रवादित्रतूर्याणां
निर्घोषस्तुमुलोऽभवत् ॥ ७ ॥
प्रीताश्चाप्सरसोऽनृत्यन्गन्धर्वप्रवरा
जगुः
तुष्टुवुर्मुनयो
देवा मनवः पितरोऽग्नयः ॥ ८ ॥
सिद्धविद्याधरगणाः
सकिम्पुरुषकिन्नराः
चारणा
यक्षरक्षांसि सुपर्णा भुजगोत्तमाः ॥ ९ ॥
गायन्तोऽतिप्रशंसन्तो
नृत्यन्तो विबुधानुगाः
अदित्या
आश्रमपदं कुसुमैः समवाकिरन् ॥ १० ॥
परीक्षित् ! जिस समय भगवान्ने जन्म ग्रहण किया, उस समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्रपर थे। भाद्रपद मासके
शुक्लपक्षकी श्रवणनक्षत्रवाली द्वादशी थी। अभिजित् मुहूर्तमें भगवान्का जन्म हुआ
था। सभी नक्षत्र और तारे भगवान्के जन्मको मङ्गलमय सूचित कर रहे थे ॥ ५ ॥
परीक्षित् ! जिस तिथिमें भगवान्का जन्म हुआ था, उसे ‘विजया द्वादशी’ कहते हैं। जन्मके समय सूर्य आकाशके मध्यभागमें स्थित थे ॥ ६ ॥ भगवान् के
अवतारके समय शङ्ख,
ढोल,
मृदङ्ग, डफ और नगाड़े
आदि बाजे बजने लगे। इन तरह-तरहके बाजों और तुरहियोंकी तुमुल ध्वनि होने लगी ॥ ७ ॥
अप्सराएँ प्रसन्न होकर नाचने लगीं। श्रेष्ठ गन्धर्व गाने लगे। मुनि, देवता, मनु, पितर और अग्नि स्तुति करने लगे ॥ ८ ॥ सिद्ध, विद्याधर, किम्पुरुष, किन्नर, चारण, यक्ष, राक्षस, पक्षी, मुख्य-मुख्य
नागगण और देवताओंके अनुचर नाचने-गाने एवं भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे तथा उन
लोगोंने अदितिके आश्रमको पुष्पोंकी वर्षासे ढक दिया ॥ ९-१० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएं🌺🎋🥀 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
🚩🌷श्री मन्नारायण भज मन नारायण🌷🚩
जवाब देंहटाएं