शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

वामन भगवान्‌ का प्रकट होकर
राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना

श्रीशुक उवाच
इत्थं विरिञ्चस्तुतकर्मवीर्यः
प्रादुर्बभूवामृतभूरदित्याम्
चतुर्भुजः शङ्खगदाब्जचक्रः
पिशङ्गवासा नलिनायतेक्षणः ॥ १ ॥
श्यामावदातो झषराजकुण्डल-
त्विषोल्लसच्छ्रीवदनाम्बुजः पुमान्
श्रीवत्सवक्षा बलयाङ्गदोल्लस-
त्किरीटकाञ्चीगुणचारुनूपुरः ॥ २ ॥
मधुव्रातव्रतविघुष्टया स्वया
विराजितः श्रीवनमालया हरिः
प्रजापतेर्वेश्मतमः स्वरोचिषा
विनाशयन्कण्ठनिविष्टकौस्तुभः ॥ ३ ॥
दिशः प्रसेदुः सलिलाशयास्तदा
प्रजाः प्रहृष्टा ऋतवो गुणान्विताः
द्यौरन्तरीक्षं क्षितिरग्निजिह्वा
गावो द्विजाः सञ्जहृषुर्नगाश्च ॥ ४ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! इस प्रकार जब ब्रह्माजीने भगवान्‌ की शक्ति और लीलाकी स्तुति की, तब जन्म-मृत्युरहित भगवान्‌ अदिति के सामने प्रकट हुए। भगवान्‌ के चार भुजाएँ थीं; उनमें वे शङ्ख, गदा, कमल और चक्र धारण किये हुए थे। कमलके समान कोमल और बड़े-बड़े नेत्र थे। पीताम्बर शोभायमान हो रहा था ॥ १ ॥ विशुद्ध श्यामवर्णका शरीर था। मकराकृति कुण्डलोंकी कान्तिसे मुख-कमलकी शोभा और भी उल्लसित हो रही थी। वक्ष:स्थलपर श्रीवत्सका चिह्न, हाथोंमें कंगन और भुजाओंमें बाजूबंद, सिरपर किरीट, कमरमें करधनीकी लडिय़ाँ और चरणोंमें सुन्दर नूपुर जगमगा रहे थे ॥ २ ॥ भगवान्‌ गलेमें अपनी स्वरूपभूत वनमाला धारण किये हुए थे, जिसके चारों ओर झुंड-के-झुंड भौंरे गुंजार कर रहे थे। उनके कण्ठमें कौस्तुभमणि सुशोभित थी। भगवान्‌की अङ्गकान्तिसे प्रजापति कश्यपजीके घरका अन्धकार नष्ट हो गया ॥ ३ ॥ उस समय दिशाएँ निर्मल हो गयीं। नदी और सरोवरोंका जल स्वच्छ हो गया। प्रजाके हृदयमें आनन्दकी बाढ़ आ गयी। सब ऋतुएँ एक साथ अपना-अपना गुण प्रकट करने लगीं। स्वर्गलोक, अन्तरिक्ष, पृथ्वी, देवता, गौ, द्विज और पर्वतइन सबके हृदयमें हर्षका सञ्चार हो गया ॥ ४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




6 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम

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  2. परम प्रभु के वामन स्वरूप की बारम्बार जय हो🌷नमो नारायणाय🌷

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  3. नारायण नारायण नारायण हरि: हरि:
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    वामन अवतार में श्री हरि: को सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: चरण वंदन
    🌺🥀🌷जय श्री हरि: 🙏🙏🙏

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  4. ओम नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🙏

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  5. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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