॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
आगामी सात मन्वन्तरोंका वर्णन
दत्त्वेमां याचमानाय विष्णवे यः पदत्रयम्
राद्धमिन्द्र पदं हित्वा ततः सिद्धिमवाप्स्यति ॥ १३ ॥
योऽसौ भगवता बद्धः प्रीतेन सुतले पुनः
निवेशितोऽधिके स्वर्गादधुनास्ते स्वराडिव ॥ १४ ॥
गालवो दीप्तिमान्रामो द्रोणपुत्रः कृपस्तथा
ऋष्यशृङ्गः पितास्माकं भगवान्बादरायणः ॥ १५ ॥
इमे सप्तर्षयस्तत्र भविष्यन्ति स्वयोगतः
इदानीमासते राजन्स्वे स्व आश्रममण्डले ॥ १६ ॥
देवगुह्यात्सरस्वत्यां सार्वभौम इति प्रभुः
स्थानं पुरन्दराद्धृत्वा बलये दास्यतीश्वरः ॥ १७ ॥
विष्णु भगवान् ने वामन अवतार ग्रहण करके इन्हीं से तीन पग
पृथ्वी माँगी थी;
परंतु इन्होंने उनको सारी त्रिलोकी दे दी। राजा बलिको एक
बार तो भगवान् ने बाँध दिया था, परंतु फिर
प्रसन्न होकर उन्होंने इनको स्वर्गसे भी श्रेष्ठ सुतल लोकका राज्य दे दिया। वे इस
समय वहीं इन्द्रके समान विराजमान हैं। आगे चलकर ये ही इन्द्र होंगे और समस्त
ऐश्वर्योंसे परिपूर्ण इन्द्रपदका भी परित्याग करके परम सिद्धि प्राप्त करेंगे ॥
१३-१४ ॥ गालव,
दीप्तिमान्, परशुराम,
अश्वत्थामा, कृपाचार्य,
ऋष्यशृङ्ग और हमारे पिता भगवान् व्यास—ये आठवें मन्वन्तरमें सप्तर्षि होंगे। इस समय ये लोग
योगबलसे अपने-अपने आश्रम-मण्डलमें स्थित हैं ॥ १५-१६ ॥ देवगुह्यकी पत्नी सरस्वतीके
गर्भसे सार्वभौम नामक भगवान्का अवतार होगा। ये ही प्रभु पुरन्दर इन्द्रसे
स्वर्गका राज्य छीनकर राजा बलिको दे देंगे ॥ १७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएं🌾🌺🌼जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण