॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
मोहिनीरूप को देखकर महादेवजी का मोहित होना
श्रीभगवानुवाच –
दिष्ट्या त्वं विबुधश्रेष्ठ स्वां निष्ठां आत्मना स्थितः ।
यन्मे स्त्रीरूपया स्वैरं मोहितोऽप्यङ्ग मायया ॥ ३८ ॥
को नु मेऽतितरेन्मायां विषक्तस्त्वदृते पुमान् ।
तान् तान् विसृजतीं भावान् दुस्तरामकृतात्मभिः ॥ ३९ ॥
सेयं गुणमयी माया न त्वां अभिभविष्यति ।
मया समेता कालेन कालरूपेण भागशः ॥ ४० ॥
श्रीभगवान् ने कहा—देवशिरोमणे ! मेरी स्त्रीरूपिणी माया से विमोहित होकर भी आप स्वयं ही अपनी
निष्ठामें स्थित हो गये। यह बड़े ही आनन्दकी बात है ॥ ३८ ॥ मेरी माया अपार है। वह
ऐसे-ऐसे हाव-भाव रचती है कि अजितेन्द्रिय पुरुष तो किसी प्रकार उससे छुटकारा पा ही
नहीं सकते। भला,
आपके अतिरिक्त ऐसा कौन पुरुष है, जो एक बार मेरी मायाके फंदेमें फँसकर फिर स्वयं ही उससे
निकल सके ॥ ३९ ॥ यद्यपि मेरी यह गुणमयी माया बड़ों-बड़ोंको मोहित कर देती है, फिर भी अब यह आपको कभी मोहित नहीं करेगी। क्योंकि सृष्टि
आदिके लिये समयपर उसे क्षोभित करनेवाला काल मैं ही हूँ, इसलिये मेरी इच्छाके विपरीत वह रजोगुण आदिकी सृष्टि नहीं कर
सकती ॥ ४० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌺🌸🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण हरि: हरि:
💐नमो भगवते वासुदेवाय💐
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