शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

देवासुर-संग्रामकी समाप्ति

श्रीबलिरुवाच
सङ्ग्रामे वर्तमानानां कालचोदितकर्मणाम्
कीर्तिर्जयोऽजयो मृत्युः सर्वेषां स्युरनुक्रमात् ॥ ७ ॥
तदिदं कालरशनं जगत्पश्यन्ति सूरयः
न हृष्यन्ति न शोचन्ति तत्र यूयमपण्डिताः ॥ ८ ॥
न वयं मन्यमानानामात्मानं तत्र साधनम्
गिरो वः साधुशोच्यानां गृह्णीमो मर्मताडनाः ॥ ९ ॥

श्रीशुक उवाच
इत्याक्षिप्य विभुं वीरो नाराचैर्वीरमर्दनः
आकर्णपूर्णैरहनदाक्षेपैराह तं पुनः ॥ १० ॥
एवं निराकृतो देवो वैरिणा तथ्यवादिना
नामृष्यत्तदधिक्षेपं तोत्राहत इव द्विपः ॥ ११ ॥
प्राहरत्कुलिशं तस्मा अमोघं परमर्दनः
सयानो न्यपतद्भूमौ छिन्नपक्ष इवाचलः ॥ १२ ॥

बलिने कहाइन्द्र ! जो लोग कालशक्तिकी प्रेरणासे अपने कर्मके अनुसार युद्ध करते हैंउन्हें जीत या हार, यश या अपयश अथवा मृत्यु मिलती ही है ॥ ७ ॥ इसीसे ज्ञानीजन इस जगत्को कालके अधीन समझकर न तो विजय होनेपर हर्षसे फूल उठते हैं और न तो अपकीर्ति, हार अथवा मृत्युसे शोकके ही वशीभूत होते हैं। तुमलोग इस तत्त्वसे अनभिज्ञ हो ॥ ८ ॥ तुमलोग अपनेको जय-पराजय आदिका कारणकर्ता मानते हो, इसलिये महात्माओंकी दृष्टिसे तुम शोचनीय हो। हम तुम्हारे मर्मस्पर्शी वचनको स्वीकार ही नहीं करते, फिर हमें दु:ख क्यों होने लगा ? ॥ ९ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैंवीर बलिने इन्द्रको इस प्रकार फटकारा। बलिकी फटकारसे इन्द्र कुछ झेंप गये। तबतक वीरोंका मान मर्दन करनेवाले बलिने अपने धनुषको कानतक खींच-खींचकर बहुत-से बाण मारे ॥ १० ॥ सत्यवादी देवशत्रु बलिने इस प्रकार इन्द्रका अत्यन्त तिरस्कार किया। अब तो इन्द्र अङ्कुशसे मारे हुए हाथीकी तरह और भी चिढ़ गये। बलिका आक्षेप वे सहन न कर सके ॥ ११ ॥ शत्रुघाती इन्द्रने बलिपर अपने अमोघ वज्रका प्रहार किया। उसकी चोटसे बलि पंख कटे हुए पर्वतके समान अपने विमानके साथ पृथ्वीपर गिर पड़े ॥ १२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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