॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
देवासुर-संग्रामकी समाप्ति
श्रीबलिरुवाच
सङ्ग्रामे वर्तमानानां कालचोदितकर्मणाम्
कीर्तिर्जयोऽजयो मृत्युः सर्वेषां स्युरनुक्रमात् ॥ ७ ॥
तदिदं कालरशनं जगत्पश्यन्ति सूरयः
न हृष्यन्ति न शोचन्ति तत्र यूयमपण्डिताः ॥ ८ ॥
न वयं मन्यमानानामात्मानं तत्र साधनम्
गिरो वः साधुशोच्यानां गृह्णीमो मर्मताडनाः ॥ ९ ॥
श्रीशुक उवाच
इत्याक्षिप्य विभुं वीरो नाराचैर्वीरमर्दनः
आकर्णपूर्णैरहनदाक्षेपैराह तं पुनः ॥ १० ॥
एवं निराकृतो देवो वैरिणा तथ्यवादिना
नामृष्यत्तदधिक्षेपं तोत्राहत इव द्विपः ॥ ११ ॥
प्राहरत्कुलिशं तस्मा अमोघं परमर्दनः
सयानो न्यपतद्भूमौ छिन्नपक्ष इवाचलः ॥ १२ ॥
बलिने कहा—इन्द्र ! जो
लोग कालशक्तिकी प्रेरणासे अपने कर्मके अनुसार युद्ध करते हैं—उन्हें जीत या हार, यश या अपयश अथवा मृत्यु मिलती ही है ॥ ७ ॥ इसीसे ज्ञानीजन इस जगत्को कालके
अधीन समझकर न तो विजय होनेपर हर्षसे फूल उठते हैं और न तो अपकीर्ति, हार अथवा मृत्युसे शोकके ही वशीभूत होते हैं। तुमलोग इस
तत्त्वसे अनभिज्ञ हो ॥ ८ ॥ तुमलोग अपनेको जय-पराजय आदिका कारण—कर्ता मानते हो, इसलिये महात्माओंकी दृष्टिसे तुम शोचनीय हो। हम तुम्हारे मर्मस्पर्शी वचनको
स्वीकार ही नहीं करते,
फिर हमें दु:ख क्यों होने लगा ? ॥ ९ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—वीर बलिने इन्द्रको इस प्रकार फटकारा। बलिकी फटकारसे इन्द्र कुछ झेंप गये।
तबतक वीरोंका मान मर्दन करनेवाले बलिने अपने धनुषको कानतक खींच-खींचकर बहुत-से बाण
मारे ॥ १० ॥ सत्यवादी देवशत्रु बलिने इस प्रकार इन्द्रका अत्यन्त तिरस्कार किया।
अब तो इन्द्र अङ्कुशसे मारे हुए हाथीकी तरह और भी चिढ़ गये। बलिका आक्षेप वे सहन न
कर सके ॥ ११ ॥ शत्रुघाती इन्द्रने बलिपर अपने अमोघ वज्रका प्रहार किया। उसकी चोटसे
बलि पंख कटे हुए पर्वतके समान अपने विमानके साथ पृथ्वीपर गिर पड़े ॥ १२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएं💐🌸🌷 जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण