रविवार, 6 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

देवासुर-संग्रामकी समाप्ति

सखायं पतितं दृष्ट्वा जम्भो बलिसखः सुहृत्
अभ्ययात्सौहृदं सख्युर्हतस्यापि समाचरन् ॥ १३ ॥
स सिंहवाह आसाद्य गदामुद्यम्य रंहसा
जत्रावताडयच्छक्रं गजं च सुमहाबलः ॥ १४ ॥
गदाप्रहारव्यथितो भृशं विह्वलितो गजः
जानुभ्यां धरणीं स्पृष्ट्वा कश्मलं परमं ययौ ॥ १५ ॥
ततो रथो मातलिना हरिभिर्दशशतैर्वृतः
आनीतो द्विपमुत्सृज्य रथमारुरुहे विभुः ॥ १६ ॥
तस्य तत्पूजयन्कर्म यन्तुर्दानवसत्तमः
शूलेन ज्वलता तं तु स्मयमानोऽहनन्मृधे ॥ १७ ॥
सेहे रुजं सुदुर्मर्षां सत्त्वमालम्ब्य मातलिः
इन्द्रो जम्भस्य सङ्क्रुद्धो वज्रेणापाहरच्छिरः ॥ १८ ॥

बलिका एक बड़ा हितैषी और घनिष्ठ मित्र जम्भासुर था। अपने मित्रके गिर जानेपर भी उनको मारनेका बदला लेनेके लिये वह इन्द्रके सामने आ खड़ा हुआ ॥ १३ ॥ सिंहपर चढक़र वह इन्द्रके पास पहुँच गया और बड़े वेगसे अपनी गदा उठाकर उनके जत्रुस्थान (हँसली) पर प्रहार किया। साथ ही उस महाबलीने ऐरावतपर भी एक गदा जमायी ॥ १४ ॥ गदाकी चोटसे ऐरावतको बड़ी पीड़ा हुई, उसने व्याकुलतासे घुटने टेक दिये और फिर मूर्च्छित हो गया ॥ १५ ॥ उसी समय इन्द्रका सारथि मातलि हजार घोड़ोंसे जुता हुआ रथ ले आया और शक्तिशाली इन्द्र ऐरावत को छोडक़र तुरंत रथपर सवार हो गये ॥ १६ ॥ दानवश्रेष्ठ जम्भ ने रणभूमि में मातलि के इस कामकी बड़ी प्रशंसा की और मुसकराकर चमकता हुआ त्रिशूल उसके ऊपर चलाया ॥ १७ ॥ मातलिने धैर्यके साथ इस असह्य पीड़ा को सह लिया। तब इन्द्र ने क्रोधित होकर अपने वज्रसे जम्भका सिर काट डाला ॥ १८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




6 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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  3. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏🙏

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  4. 🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण हरि: हरि:

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  5. 🌼💐🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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