रविवार, 6 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

देवासुर-संग्रामकी समाप्ति

जम्भं श्रुत्वा हतं तस्य ज्ञातयो नारदादृषेः
नमुचिश्च बलः पाकस्तत्रापेतुस्त्वरान्विताः ॥ १९ ॥
वचोभिः परुषैरिन्द्र मर्दयन्तोऽस्य मर्मसु
शरैरवाकिरन्मेघा धाराभिरिव पर्वतम् ॥ २० ॥
हरीन्दशशतान्याजौ हर्यश्वस्य बलः शरैः
तावद्भिरर्दयामास युगपल्लघुहस्तवान् ॥ २१ ॥
शताभ्यां मातलिं पाको रथं सावयवं पृथक्
सकृत्सन्धानमोक्षेण तदद्भुतमभूद्रणे ॥ २२ ॥
नमुचिः पञ्चदशभिः स्वर्णपुङ्खैर्महेषुभिः
आहत्य व्यनदत्सङ्ख्ये सतोय इव तोयदः ॥ २३ ॥

देवर्षि नारदसे जम्भासुर की मृत्युका समाचार जानकर उसके भाई-बन्धु नमुचि, बल और पाक झटपट रणभूमिमें आ पहुँचे ॥ १९ ॥ अपने कठोर और मर्मस्पर्शी वाणीसे उन्होंने इन्द्रको बहुत कुछ बुरा-भला कहा और जैसे बादल पहाड़पर मूसलधार पानी बरसाते हैं , वैसे ही उनके ऊपर बाणोंकी झड़ी लगा दी ॥ २० ॥ बलने बड़े हस्तलाघवसे एक साथ ही एक हजार बाण चलाकर इन्द्रके एक हजार घोड़ोंको घायल कर दिया ॥ २१ ॥ पाकने सौ बाणोंसे मातलिको और सौ बाणोंसे रथके एक-एक अङ्गको छेद डाला। युद्धभूमिमें यह बड़ी अद्भुत घटना हुई कि एक ही बार इतने बाण उसने चढ़ाये और चलाये ॥ २२ ॥ नमुचिने बड़े-बड़े पंद्रह बाणोंसे, जिनमें सोनेके पंख लगे हुए थे, इन्द्र को मारा और युद्धभूमि में वह जलसे भरे बादल के समान गरजने लगा ॥२३॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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