सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

देवासुर-संग्रामकी समाप्ति

सर्वतः शरकूटेन शक्रं सरथसारथिम्
छादयामासुरसुराः प्रावृट्सूर्यमिवाम्बुदाः ॥ २४ ॥
अलक्षयन्तस्तमतीव विह्वला
विचुक्रुशुर्देवगणाः सहानुगाः
अनायकाः शत्रुबलेन निर्जिता
वणिक्पथा भिन्ननवो यथार्णवे ॥ २५ ॥
ततस्तुराषाडिषुबद्धञ्जरा-
द्विनिर्गतः साश्वरथध्वजाग्रणीः
बभौ दिशः खं पृथिवीं च रोचयन्
स्वतेजसा सूर्य इव क्षपात्यये ॥ २६ ॥
निरीक्ष्य पृतनां देवः परैरभ्यर्दितां रणे
उदयच्छद्रि पुं हन्तुं वज्रं वज्रधरो रुषा ॥ २७ ॥
स तेनैवाष्टधारेण शिरसी बलपाकयोः
ज्ञातीनां पश्यतां राजन्जहार जनयन्भयम् २८

जैसे वर्षाकाल के बादल सूर्य को ढक लेते हैं, वैसे ही असुरों ने बाणों की वर्षासे इन्द्र और उनके रथ तथा सारथिको भी चारों ओरसे ढक दिया ॥ २४ ॥ इन्द्रको न देखकर देवता और उनके अनुचर अत्यन्त विह्वल होकर रोने-चिल्लाने लगे। एक तो शत्रुओंने उन्हें हरा दिया था और दूसरे अब उनका कोई सेनापति भी न रह गया था। उस समय देवताओंकी ठीक वैसी ही अवस्था हो रही थी, जैसे बीच समुद्रमें नाव टूट जानेपर व्यापारियोंकी होती है ॥ २५ ॥ परंतु थोड़ी ही देरमें शत्रुओंके बनाये हुए बाणोंके ङ्क्षपजड़ेसे घोड़े, रथ, ध्वजा और सारथिके साथ इन्द्र निकल आये। जैसे प्रात:काल सूर्य अपनी किरणों से दिशा, आकाश और पृथ्वी को चमका देते हैं, वैसे ही इन्द्रके तेजसे सब-के-सब जगमगा उठे ॥ २६ ॥ वज्रधारी इन्द्र ने देखा कि शत्रुओं ने रणभूमि में हमारी सेना को रौंद डाला है, तब उन्होंने बड़े क्रोध से शत्रुको मार डालनेके लिये वज्र से आक्रमण किया ॥ २७ ॥ परीक्षित्‌! उस आठ धारवाले पैने वज्रसे उन दैत्यों के भाई-बन्धुओं को भी भयभीत करते हुए उन्होंने बल और पाक के सिर काट लिये ॥ २८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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