॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
देवासुर-संग्रामकी समाप्ति
नमुचिस्तद्वधं दृष्ट्वा शोकामर्षरुषान्वितः
जिघांसुरिन्द्रं नृपते चकार परमोद्यमम् ॥ २९ ॥
अश्मसारमयं शूलं घण्टावद्धेमभूषणम्
प्रगृह्याभ्यद्र वत्क्रुद्धो हतोऽसीति वितर्जयन्
प्राहिणोद्देवराजाय निनदन्मृगराडिव ॥ ३० ॥
तदापतद्गगनतले महाजवं
विचिच्छिदे हरिरिषुभिः सहस्रधा
तमाहनन्नृप कुलिशेन कन्धरे
रुषान्वितस्त्रिदशपतिः शिरो हरन् ॥ ३१ ॥
न तस्य हि त्वचमपि वज्र ऊर्जितो
बिभेद यः सुरपतिनौजसेरितः
तदद्भुतं परमतिवीर्यवृत्रभित्
तिरस्कृतो नमुचिशिरोधरत्वचा ॥ ३२ ॥
परीक्षित् ! अपने भाइयों को मरा हुआ देख नमुचि को बड़ा शोक
हुआ। वह क्रोध के कारण आपे से बाहर होकर इन्द्रको मार डालने के लिये जी-जानसे
प्रयास करने लगा ॥ २९ ॥ ‘इन्द्र ! अब तुम बच नहीं सकते’—इस प्रकार ललकारते हुए एक त्रिशूल उठाकर वह इन्द्रपर टूट
पड़ा। वह त्रिशूल फौलादका बना हुआ था, सोनेके आभूषणोंसे विभूषित था और उसमें घण्टे लगे हुए थे। नमुचिने क्रोधके मारे
सिंहके समान गरजकर इन्द्रपर वह त्रिशूल चला दिया ॥ ३० ॥ परीक्षित् ! इन्द्रने
देखा कि त्रिशूल बड़े वेगसे मेरी ओर आ रहा है। उन्होंने अपने बाणोंसे आकाशमें ही
उसके हजारों टुकड़े कर दिये और इसके बाद देवराज इन्द्रने बड़े क्रोधसे उसका सिर
काट लेनेके लिये उसकी गर्दनपर वज्र मारा ॥ ३१ ॥ यद्यपि इन्द्रने बड़े वेगसे वह
वज्र चलाया था,
परंतु उस यशस्वी वज्रसे उसके चमड़ेपर खरोंचतक नहीं आयी। यह
बड़ी आश्चर्यजनक घटना हुई कि जिस वज्रने महाबली वृत्रासुरका शरीर टुकड़े-टुकड़े कर
डाला था,
नमुचिके गलेकी त्वचाने उसका तिरस्कार कर दिया ॥ ३२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌷🌾🌸जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण