सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

वामन भगवान्‌ का प्रकट होकर
राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना

श्रुत्वाश्वमेधैर्यजमानमूर्जितं
बलिं भृगूणामुपकल्पितैस्ततः
जगाम तत्रालिसारसम्भृतो
भारेण गां सन्नमयन्पदे पदे ॥ २० ॥
तं नर्मदायास्तट उत्तरे बले-
र्य ऋत्विजस्ते भृगुकच्छसंज्ञके
प्रवर्तयन्तो भृगवः क्रतूत्तमं
व्यचक्षतारादुदितं यथा रविम् ॥ २१ ॥
ते ऋत्विजो यजमानः सदस्या
हतत्विषो वामनतेजसा नृप
सूर्यः किलायात्युत वा विभावसुः
सनत्कुमारोऽथ दिदृक्षया क्रतोः ॥ २२ ॥

परीक्षित्‌ ! उसी समय भगवान्‌ ने सुना कि सब प्रकार की सामग्रियों से सम्पन्न यशस्वी बलि भृगुवंशी ब्राह्मणों के आदेशानुसार बहुत-से अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं, तब उन्होंने वहाँ के लिये यात्रा की। भगवान्‌ समस्त शक्तियोंसे युक्त हैं। उनके चलनेके समय उनके भारसे पृथ्वी पग-पगपर झुकने लगी ॥ २० ॥ नर्मदा नदीके उत्तर तटपर भृगुकच्छनामका एक बड़ा सुन्दर स्थान है। वहीं बलिके भृगुवंशी ऋत्विज् श्रेष्ठ यज्ञका अनुष्ठान करा रहे थे। उन लोगोंने दूरसे ही वामन भगवान्‌ को देखा, तो उन्हें ऐसा जान पड़ा, मानो साक्षात् सूर्यदेव का उदय हो रहा हो ॥ २१ ॥ परीक्षित्‌ ! वामन भगवान्‌ के तेजसे ऋत्विज्, यजमान और सदस्यसब-के-सब निस्तेज हो गये। वे लोग सोचने लगे कि कहीं यज्ञ देखनेके लिये सूर्य, अग्रि अथवा सनत्कुमार तो नहीं आ रहे हैं ॥ २२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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