मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश

एतैः मंत्रैः हृर्हृषीकेशं आवाहनपुरस्कृतम् ।
अर्चयेत् श्रद्धया युक्तः पाद्योपस्पर्शनादिभिः ॥ ३८ ॥
अर्चित्वा गन्धमाल्याद्यैः पयसा स्नपयेद् विभुम् ।
वस्त्रोपवीताभरण पाद्योपस्पर्शनैस्ततः ॥
गन्धधूपादिभिश्चार्चेद् द्वादशाक्षरविद्यया ॥ ३९ ॥
श्रृतं पयसि नैवेद्यं शाल्यन्नं विभवे सति ।
ससर्पिः सगुडं दत्त्वा जुहुयान् मूलविद्यया ॥ ४० ॥
निवेदितं तद्‍भक्ताय दद्याद्‍भुञ्जीत वा स्वयम् ।
दत्त्वाऽऽचमनमर्चित्वा तांबूलं च निवेदयेत् ॥ ४१ ॥
जपेत् अष्टोत्तरशतं स्तुवीत स्तुतिभिः प्रभुम् ।
कृत्वा प्रदक्षिणं भूमौ प्रणमेद् दण्डवन्मुदा ॥ ४२ ॥
कृत्वा शिरसि तच्छेषां देवं उद्वासयेत् ततः ।
द्व्यवरान् भोजयेद् विप्रान् पायसेन यथोचितम् ॥ ४३ ॥
भुञ्जीत तैरनुज्ञातः सेष्टः शेषं सभाजितैः ।
ब्रह्मचार्यथ तद् रात्र्यां श्वो भूते प्रथमेऽहनि ॥ ४४ ॥
स्नातः शुचिर्यथोक्तेन विधिना सुसमाहितः ।
पयसा स्नापयित्वार्चेद् यावद् व्रतसमापनम् ॥ ४५ ॥

(कश्यप जी अदिति से कहरहे हैं) प्रिये ! भगवान्‌ हृषीकेशका आवाहन पहले ही कर ले। फिर इन मन्त्रोंके द्वारा पाद्य, आचमन आदि के साथ श्रद्धापूर्वक मन लगाकर पूजा करे ॥ ३८ ॥ गन्ध, माला आदि से पूजा करके भगवान्‌ को दूध से स्नान करावे । उसके बाद वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, पाद्य, आचमन, गन्ध, धूप आदि के द्वारा द्वादशाक्षर मन्त्र से भगवान्‌ की पूजा करे ॥ ३९ ॥ यदि सामर्थ्य    हो तो दूध में पकाये हुए तथा घी और गुड़ मिले हुए शालि के चावल का नैवेद्य लगावे और उसी का द्वादशाक्षर मन्त्रसे हवन करे ॥ ४० ॥ उस नैवेद्य को भगवान्‌ के भक्तों में बाँट दे या स्वयं पा ले। आचमन और पूजाके बाद ताम्बूल निवेदन करे ॥ ४१ ॥ एक सौ आठ बार द्वादशाक्षर मन्त्रका जप करे और स्तुतियोंके द्वारा भगवान्‌का स्तवन करे। प्रदक्षिणा करके बड़े प्रेम और आनन्दसे भूमिपर लोटकर दण्डवत्-प्रणाम करे ॥ ४२ ॥ निर्माल्यको सिरसे लगाकर देवताका विसर्जन करे। कम-से-कम दो ब्राह्मणोंको यथोचित रीतिसे खीरका भोजन करावे ॥ ४३ ॥ दक्षिणा आदिसे उनका सत्कार करे। इसके बाद उनसे आज्ञा लेकर अपने इष्ट-मित्रोंके साथ बचे हुए अन्न को स्वयं ग्रहण करे। उस दिन ब्रह्मचर्यसे रहे और दूसरे दिन प्रात:काल ही स्नान आदि करके पवित्रतापूर्वक पूर्वोक्त विधिसे एकाग्र होकर भगवान्‌की पूजा करे। इस प्रकार जबतक व्रत समाप्त न हो, तबतक दूधसे स्नान कराकर प्रतिदिन भगवान्‌की पूजा करे ॥ ४४-४५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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