॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट१०)
देवासुर-संग्राम
तस्मिन्प्रविष्टेऽसुरकूटकर्मजा
माया विनेशुर्महिना महीयसः
स्वप्नो यथा हि प्रतिबोध आगते
हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम् ॥ ५५ ॥
दृष्ट्वा मृधे गरुडवाहमिभारिवाह
आविध्य शूलमहिनोदथ कालनेमिः
तल्लीलया गरुडमूर्ध्नि पतद्गृहीत्वा
तेनाहनन्नृप सवाहमरिं त्र्यधीशः ॥ ५६ ॥
माली सुमाल्यतिबलौ युधि पेततुर्य-
च्चक्रेण कृत्तशिरसावथ माल्यवांस्तम्
आहत्य तिग्मगदयाहनदण्डजेन्द्रं
तावच्छिरोऽच्छिनदरेर्नदतोऽरिणाद्यः ॥ ५७ ॥
परम पुरुष परमात्मा के प्रकट होते ही उनके प्रभाव से असुरों
की वह कपटभरी माया विलीन हो गयी— ठीक वैसे ही, जैसे जग जाने पर स्वप्न की वस्तुओं का पता नहीं चलता। ठीक
ही है,
भगवान् की स्मृति समस्त विपत्तियों से मुक्त कर देती है ॥
५५ ॥ इसके बाद कालनेमि दैत्य ने देखा कि लड़ाई के मैदान में गरुड़वाहन भगवान् आ
गये हैं,
तब उसने अपने सिंह पर बैठे-ही-बैठे बड़े वेगसे उनके ऊपर एक
त्रिशूल चलाया। वह गरुडक़े सिरपर लगनेवाला ही था कि खेल-खेलमें भगवान्ने उसे पकड़
लिया और उसी त्रिशूलसे उसके चलानेवाले कालनेमि दैत्य तथा उसके वाहनको मार डाला ॥
५६ ॥ माली और सुमाली—दो दैत्य बड़े बलवान् थे, भगवान्ने युद्धमें अपने चक्रसे उनके सिर भी काट डाले और वे निर्जीव होकर गिर
पड़े। तदनन्तर माल्यवान्ने अपनी प्रचण्ड गदासे गरुड़पर बड़े वेगके साथ प्रहार
किया। परंतु गर्जना करते हुए माल्यवान्के प्रहार करते-न-करते ही भगवान् ने चक्रसे
उसके सिर को भी धड़ से अलग कर दिया ॥ ५७ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायामष्टमस्कन्धे
देवासुरसङ्ग्रामे दशमोऽध्यायः
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌺💖🌷 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण