शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

देवासुर-संग्राम

एवं दैत्यैर्महामायैरलक्ष्यगतिभी रणे
सृज्यमानासु मायासु विषेदुः सुरसैनिकाः ॥ ५२ ॥
न तत्प्रतिविधिं यत्र विदुरिन्द्रादयो नृप
ध्यातः प्रादुरभूत्तत्र भगवान्विश्वभावनः ॥ ५३ ॥
ततः सुपर्णांसकृताङ्घ्रिपल्लवः
पिशङ्गवासा नवकञ्जलोचनः
अदृश्यताष्टायुधबाहुरुल्लस-
च्छ्रीकौस्तुभानर्घ्यकिरीटकुण्डलः ॥ ५४ ॥

इस प्रकार जब उन भयानक असुरों ने बहुत बड़ी मायाकी सृष्टि की और स्वयं अपनी मायाके प्रभावसे छिप रहेन दीखनेके कारण उनपर प्रहार भी नहीं किया जा सकता था, तब देवताओंके सैनिक बहुत दुखी हो गये ॥ ५२ ॥ परीक्षित्‌ ! इन्द्र आदि देवताओंने उनकी मायाका प्रतीकार करनेके लिये बहुत कुछ सोचा-विचारा, परंतु उन्हें कुछ न सूझा। तब उन्होंने विश्वके जीवनदाता भगवान्‌का ध्यान किया और ध्यान करते ही वे वहीं प्रकट हो गये ॥ ५३ ॥ बड़ी ही सुन्दर झाँकी थी। गरुडके कंधेपर उनके चरणकमल विराजमान थे। नवीन कमलके समान बड़े ही कोमल नेत्र थे। पीताम्बर धारण किये हुए थे। आठ भुजाओंमें आठ आयुध, गलेमें कौस्तुभमणि, मस्तक पर अमूल्य मुकुट एवं कानोंमें कुण्डल झलमला रहे थे। देवताओं ने अपने नेत्रों से भगवान्‌ की इस छबि का दर्शन किया ॥ ५४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





6 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

    जवाब देंहटाएं
  2. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. जय श्री सीताराम

    जवाब देंहटाएं
  4. 💐💖🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
    गोविंद गोविंद गोपाल हरे
    जय जय प्रभु दीन दयाल हरे
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...