॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
देवासुर-संग्राम
यातुधान्यश्च शतशः शूलहस्ता विवाससः
छिन्धि भिन्धीति वादिन्यस्तथा रक्षोगणाः प्रभो ॥ ४८ ॥
ततो महाघना व्योम्नि गम्भीरपरुषस्वनाः
अङ्गारान्मुमुचुर्वातैराहताः स्तनयित्नवः ॥ ४९ ॥
सृष्टो दैत्येन सुमहान्वह्निः श्वसनसारथिः
सांवर्तक इवात्युग्रो विबुधध्वजिनीमधाक् ॥ ५० ॥
ततः समुद्र उद्वेलः सर्वतः प्रत्यदृश्यत
प्रचण्डवातैरुद्धूत तरङ्गावर्तभीषणः ॥ ५१ ॥
परीक्षित् ! हाथोंमें शूल लिये ‘मारो-काटो’ इस प्रकार
चिल्लाती हुई सैकड़ों नंग-धड़ंग राक्षसियाँ और राक्षस भी वहाँ प्रकट हो गये ॥ ४८ ॥
कुछ ही क्षण बाद आकाश में बादलों की घनघोर घटाएँ मँडराने लगीं, उनके आपस में टकराने से बड़ी गहरी और कठोर गर्जना होने लगी, बिजलियाँ चमकने लगीं और आँधी के झकझोरने से बादल अंगारों की
वर्षा करने लगे ॥ ४९ ॥ दैत्यराज बलिने प्रलयकी अग्नि के समान बड़ी भयानक आग की
सृष्टि की। वह बात-की-बातमें वायु की सहायता से देवसेना को जलाने लगी ॥ ५० ॥ थोड़ी
ही देर में ऐसा जान पड़ा कि प्रबल आँधी के थपेड़ों से समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें
और भयानक भँवर उठ रहे हैं और वह अपनी मर्यादा छोडक़र चारों ओर से देव-सेना को घेरता
हुआ उमड़ा आ रहा है ॥ ५१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🍂🌼🥀🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय