॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
देवासुर-संग्राम
ससर्जाथासुरीं मायामन्तर्धानगतोऽसुरः
ततः प्रादुरभूच्छैलः सुरानीकोपरि प्रभो ॥ ४५ ॥
ततो निपेतुस्तरवो दह्यमाना दवाग्निना
शिलाः सटङ्कशिखराश्चूर्णयन्त्यो द्विषद्बलम् ॥ ४६ ॥
महोरगाः समुत्पेतुर्दन्दशूकाः सवृश्चिकाः
सिंहव्याघ्रवराहाश्च मर्दयन्तो महागजाः ॥ ४७ ॥
परीक्षित् ! अब इन्द्र की फुर्ती से घबराकर पहले तो बलि
अन्तर्धान हो गये,
फिर उन्होंने आसुरी माया की सृष्टि की। तुरंत ही देवताओं की
सेना के ऊपर एक पर्वत प्रकट हुआ ॥ ४५ ॥ उस पर्वत से दावाग्नि से जलते हुए वृक्ष और
टाँकी-जैसी तीखी धारवाले शिखरों के साथ नुकीली शिलाएँ गिरने लगीं। इससे देवताओं की
सेना चकनाचूर होने लगी ॥ ४६ ॥ तत्पश्चात् बड़े-बड़े साँप, दन्दशूक, बिच्छू और
अन्य विषैले जीव उछल-उछलकर काटने और डंक मारने लगे। सिंह, बाघ और सूअर देव-सेनाके बड़े-बड़े हाथियोंको फाडऩे लगे ॥ ४७
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शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएं🍂🌹🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय