॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –दूसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
पृषध्र, आदि मनु के पाँच पुत्रों का वंश
नाभागो दिष्टपुत्रोऽन्यः कर्मणा वैश्यतां गतः ।
भलन्दनः सुतस्तस्य वत्सप्रीतिः भलन्दनात् ॥ २३ ॥
वत्सप्रीतेः सुतः प्रांशुः तत्सुतं प्रमतिं विदुः ।
खनित्रः प्रमतेः तस्मात् चाक्षुषोऽथ विविंशतिः ॥ २४ ॥
विविंशतेः सुतो रंभः खनीनेत्रोऽस्य धार्मिकः ।
करन्धमो महाराज तस्यासीद् आत्मजो नृप ॥ २५ ॥
तस्य आवीक्षित् सुतो यस्य मरुत्तः चक्रवर्ति अभूत् ।
संवर्तोऽयाजयद् यं वै महायोग्यङ्गिरःसुतः ॥ २६ ॥
मरुत्तस्य यथा यज्ञो न तथान्योऽस्ति कश्चन ।
सर्वं हिरण्मयं त्वासीत् यत्किञ्चिच्चास्य शोभनम् ॥ २७ ॥
अमाद्यदिन्द्रः सोमेन दक्षिणाभिर्द्विजातयः ।
मरुतः परिवेष्टारो विश्वेदेवाः सभासदः ॥ २८ ॥
दिष्ट के पुत्र का नाम था नाभाग । यह उस नाभाग से अलग है, जिसका मैं आगे वर्णन करूँगा। वह अपने कर्म के कारण वैश्य हो गया। उसका पुत्र हुआ भलन्दन और उसका वत्सप्रीति ॥ २३ ॥ वत्सप्रीतिका प्रांशु और प्रांशुका पुत्र हुआ प्रमति। प्रमतिके खनित्र, खनित्रके चाक्षुष और उनके विविंशति हुए ॥ २४ ॥ विविंशतिके पुत्र रम्भ और रम्भके पुत्र खनित्र—दोनों ही परम धार्मिक हुए। उनके पुत्र करन्धम और करन्धमके अवीक्षित्। महाराज परीक्षित् ! अवीक्षित् के पुत्र मरुत्त चक्रवर्ती राजा हुए। उनसे अङ्गिरा के पुत्र महायोगी संवर्त्त ऋषि ने यज्ञ कराया था ॥ २५-२६ ॥ मरुत्त का यज्ञ जैसा हुआ, वैसा और किसीका नहीं हुआ। उस यज्ञके समस्त छोटे-बड़े पात्र अत्यन्त सुन्दर एवं सोनेके बने हुए थे ॥ २७ ॥ उस यज्ञ में इन्द्र सोमपान करके मतवाले हो गये थे और दक्षिणाओं से ब्राह्मण तृप्त हो गये थे। उसमें परसने वाले थे मरुद्गण और विश्वेदेव सभासद् थे ॥ २८ ॥
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंĴai Shri Krishna
जवाब देंहटाएं🌷🌸🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण