रविवार, 24 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –दूसरा अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध दूसरा अध्याय..(पोस्ट०३)

पृषध्र, आदि मनु के पाँच पुत्रों का वंश

कविः कनीयान् विषयेषु निःस्पृहो
विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम् ।
निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं
विवेश कैशोरवयाः परं गतः ॥ १५ ॥
करूषान् मानवाद् आसन् कारूषाः क्षत्रजातयः ।
उत्तरापथगोप्तारो ब्रह्मण्या धर्मवत्सलाः ॥ १६ ॥
धृष्टाद् धार्ष्टमभूत् क्षत्रं ब्रह्मभूयं गतं क्षितौ ।
नृगस्य वंशः सुमतिः भूतज्योतिः ततो वसुः ॥ १७ ॥
वसोः प्रतीकस्तत्पुत्र ओघवान् ओघवत्पिता ।
कन्या चौघवती नाम सुदर्शन उवाह ताम् ॥ १८ ॥
चित्रसेनो नरिष्यन्ताद् ऋक्षस्तस्य सुतोऽभवत् ।
तस्य मीढ्वांस्ततः पूर्ण इन्द्रसेनस्तु तत्सुतः ॥ १९ ॥
वीतिहोत्रस्तु इन्द्रसेनात् तस्य सत्यश्रवा अभूत् ।
उरुश्रवाः सुतस्तस्य देवदत्तस्ततोऽभवत् ॥ २० ॥
ततोऽग्निवेश्यो भगवान् अग्निः स्वयं अभूत्सुतः ।
कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महान् ऋषिः ॥ २१ ॥
ततो ब्रह्मकुलं जातं आग्निवेश्यायनं नृप ।
नरिष्यन्तान्वयः प्रोक्तो दिष्टवंशमतः शृणु ॥ २२ ॥

मनुका सबसे छोटा पुत्र था कवि। विषयोंसे वह अत्यन्त नि:स्पृह था। वह राज्य छोडक़र अपने बन्धुओंके साथ वनमें चला गया और अपने हृदयमें स्वयंप्रकाश परमात्माको विराजमान कर किशोर अवस्थामें ही परम पदको प्राप्त हो गया ॥ १५ ॥
मनुपुत्र करूषसे कारूष नामक क्षत्रिय उत्पन्न हुए। वे बड़े ही ब्राह्मणभक्त, धर्मप्रेमी एवं उत्तरापथके रक्षक थे ॥ १६ ॥ धृष्टके धाष्टर् नामक क्षत्रिय हुए। अन्तमें वे इस शरीरसे ही ब्राह्मण बन गये। नृगका पुत्र हुआ सुमति, उसका पुत्र भूतज्योति और भूतज्योति का पुत्र वसु था ॥ १७ ॥ वसुका पुत्र प्रतीक और प्रतीकका पुत्र ओघवान्। ओघवान्के पुत्रका नाम भी ओघवान् ही था। उनके एक ओघवती नामकी कन्या भी थी, जिसका विवाह सुदर्शनसे हुआ ॥ १८ ॥ मनुपुत्र नरिष्यन्तसे चित्रसेन, उससे ऋक्ष, ऋक्षसे मीढ्वान्, मीढ्वान्
से कूर्च और उससे इन्द्रसेनकी उत्पत्ति हुई ॥ १९ ॥ इन्द्रसेनसे वीतिहोत्र, उससे सत्यश्रवा, सत्यश्रवासे उरुश्रवा और उससे देवदत्तकी उत्पत्ति हुई ॥ २० ॥ देवदत्तके अग्निवेश्य नामक पुत्र हुए, जो स्वयं अग्निदेव ही थे। आगे चलकर वे ही कानीन एवं महर्षि जातूकर्ण्य के नामसे विख्यात हुए ॥ २१ ॥ परीक्षित्‌ ! ब्राह्मणोंका आग्निवेश्यायनगोत्र उन्हींसे चला है। इस प्रकार नरिष्यन्तके वंशका मैंने वर्णन किया, अब दिष्टका वंश सुनो ॥ २२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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