॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –चौथा अध्याय..(पोस्ट०३)
नाभाग और अम्बरीष की कथा
श्रीराजोवाच ।
भगवन् श्रोतुमिच्छामि राजर्षेः तस्य धीमतः ।
न प्राभूद् यत्र निर्मुक्तो ब्रह्मदण्डो दुरत्ययः ॥ १४ ॥
श्रीशुक उवाच ।
अंबरीषो महाभागः सप्तद्वीपवतीं महीम् ।
अव्ययां च श्रियं लब्ध्वा विभवं चातुलं भुवि ॥ १५ ॥
मेनेऽतिदुर्लभं पुंसां सर्वं तत् स्वप्नसंस्तुतम् ।
विद्वान् विभवनिर्वाणं तमो विशति यत् पुमान् ॥ १६ ॥
वासुदेवे भगवति तद्भक्तेषु च साधुषु ।
प्राप्तो भावं परं विश्वं येनेदं लोष्टवत् स्मृतम् ॥ १७ ॥
स वै मनः कृष्णपदारविन्दयोः
वचांसि
वैकुण्ठगुणानुवर्णने ।
करौ
हरेर्मन्दिरमार्जनादिषु
श्रुतिं
चकाराच्युतसत्कथोदये ॥ १८ ॥
मुकुन्दलिंगालयदर्शने दृशौ
तद्भृत्यगात्रस्पर्शेङ्गसंगमम्
।
घ्राणं च
तत्पादसरोजसौरभे
श्रीमत्
तुलस्या रसनां तदर्पिते ॥ १९ ॥
राजा परीक्षित्ने पूछा—भगवन् ! मैं परमज्ञानी राजर्षि अम्बरीषका चरित्र सुनना चाहता हूँ। ब्राह्मणने क्रोधित होकर उन्हें ऐसा दण्ड दिया, जो किसी प्रकार टाला नहीं जा सकता; परंतु वह भी उनका कुछ न बिगाड़ सका ॥ १४ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहा—परीक्षित् ! अम्बरीष बड़े भाग्यवान् थे। पृथ्वीके सातों द्वीप, अचल सम्पत्ति और अतुलनीय ऐश्वर्य उनको प्राप्त था। यद्यपि ये सब साधारण मनुष्योंके लिये अत्यन्त दुर्लभ वस्तुएँ हैं, फिर भी वे इन्हें स्वप्नतुल्य समझते थे। क्योंकि वे जानते थे कि जिस धन-वैभवके लोभमें पडक़र मनुष्य घोर नरकमें जाता है, वह केवल चार दिनकी चाँदनी है। उसका दीपक तो बुझा-बुझाया है ॥ १५-१६ ॥ भगवान् श्रीकृष्णमें और उनके प्रेमी साधुओंमें उनका परम प्रेम था। उस प्रेमके प्राप्त हो जानेपर तो यह सारा विश्व और इसकी समस्त सम्पत्तियाँ मिट्टी के ढेले के समान जान पड़ती हैं ॥ १७ ॥ उन्होंने अपने मनको श्रीकृष्णचन्द्र के चरणारविन्द युगल में, वाणीको भगवद्गुणानुवर्णन में, हाथोंको श्रीहरिमन्दिर के मार्जन-सेवन में और अपने कानोंको भगवान् अच्युतकी मङ्गलमयी कथाके श्रवणमें लगा रखा था ॥ १८ ॥ उन्होंने अपने नेत्र मुकुन्दमूर्ति एवं मन्दिरोंके दर्शनोंमें, अङ्ग-सङ्ग भगवद्भक्तोंके शरीर-स्पर्श में, नासिका उनके चरणकमलोंपर चढ़ी श्रीमती तुलसीके दिव्य गन्धमें और रसना (जिह्वा) को भगवान् के प्रति अर्पित नैवेद्य-प्रसादमें संलग्र कर दिया था ॥ १९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
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जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJai Shri Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण राधे राधे
जवाब देंहटाएं💖🌹🥀💖जय श्री हरि:🙏🙏
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नारायण नारायण नारायण नारायण
Jay shree Krishna
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