शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध पहला अध्याय..(पोस्ट०४)

वैवस्वत मनु के पुत्र राजा सुद्युम्न की कथा

श्रीराजोवाच ।
कथं एवं गुणो देशः केन वा भगवन् कृतः ।
प्रश्नमेनं समाचक्ष्व परं कौतूहलं हि नः ॥ २८ ॥

श्रीशुक उवाच ।
एकदा गिरिशं द्रष्टुं ऋषयस्तत्र सुव्रताः ।
दिशो वितिमिराभासाः कुर्वन्तः समुपागमन् ॥ २९ ॥
तान् विलोक्य अंबिका देवी विवासा व्रीडिता भृशम् ।
भर्तुरङ्‌गात समुत्थाय नीवीमाश्वथ पर्यधात् ॥ ३० ॥
ऋषयोऽपि तयोर्वीक्ष्य प्रसङ्‌गं रममाणयोः ।
निवृत्ताः प्रययुस्तस्मात् नरनारायणाश्रमम् ॥ ३१ ॥
तदिदं भगवान् आह प्रियायाः प्रियकाम्यया ।
स्थानं यः प्रविशेदेतत् स वै योषिद् भवेदिति ॥ ३२ ॥
तत ऊर्ध्वं वनं तद्वै पुरुषा वर्जयन्ति हि ।
सा चानुचरसंयुक्ता विचचार वनाद् वनम् ॥ ३३ ॥
अथ तां आश्रमाभ्याशे चरन्तीं प्रमदोत्तमाम् ।
स्त्रीभिः परिवृतां वीक्ष्य चकमे भगवान् बुधः ॥ ३४ ॥
सापि तं चकमे सुभ्रूः सोमराजसुतं पतिम् ।
स तस्यां जनयामास पुरूरवसमात्मजम् ॥ ३५ ॥
एवं स्त्रीत्वं अनुप्राप्तः सुद्युम्नो मानवो नृपः ।
सस्मार स कुलाचार्यं वसिष्ठमिति शुश्रुम ॥ ३६ ॥

राजा परीक्षित्‌ने पूछाभगवन् ! उस भूखण्डमें ऐसा विचित्र गुण कैसे आ गया ? किसने उसे ऐसा बना दिया था ? आप कृपा कर हमारे इस प्रश्रका उत्तर दीजिये; क्योंकि हमें बड़ा कौतूहल हो रहा है ॥ २८ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहापरीक्षित्‌ ! एक दिन भगवान्‌ शङ्करका दर्शन करनेके लिये बड़े-बड़े व्रतधारी ऋषि अपने तेजसे दिशाओंका अन्धकार मिटाते हुए उस वनमें गये ॥ २९ ॥ उस समय अम्बिका देवी वस्त्रहीन थीं। ऋषियोंको सहसा आया देख वे अत्यन्त लज्जित हो गयीं। झटपट उन्होंने भगवान्‌ शङ्कर की गोदसे उठकर वस्त्र धारण कर लिया ॥ ३० ॥ ऋषियों ने भी देखा कि भगवान्‌ गौरी-शङ्कर इस समय विहार कर रहे हैं, इसलिये वहाँ से लौटकर वे भगवान्‌ नर-नारायणके आश्रमपर चले गये ॥ ३१ ॥ उसी समय भगवान्‌ शङ्कर  ने अपनी प्रिया भगवती अम्बिका को प्रसन्न करनेके लिये कहा कि मेरे सिवा जो भी पुरुष इस स्थानमें प्रवेश करेगा, वही स्त्री हो जायेगा॥ ३२ ॥ परीक्षित्‌ ! तभीसे पुरुष उस स्थानमें प्रवेश नहीं करते। अब सुद्युम्न स्त्री हो गये थे। इसलिये वे अपने स्त्री बने हुए अनुचरोंके साथ एक वनसे दूसरे वनमें विचरने लगे ॥ ३३ ॥ उसी समय शक्तिशाली बुध ने देखा कि मेरे आश्रमके पास ही बहुत-सी स्त्रियोंसे घिरी हुई एक सुन्दरी स्त्री विचर रही है। उन्होंने इच्छा की कि यह मुझे प्राप्त हो जाय ॥ ३४ ॥ उस सुन्दरी स्त्री ने भी चन्द्रकुमार बुध को पति बनाना चाहा। इसपर बुध ने उसके गर्भसे पुरूरवा नामका पुत्र उत्पन्न किया ॥ ३५ ॥ इस प्रकार मनुपुत्र राजा सुद्युम्न स्त्री हो गये। ऐसा सुनते हैं कि उन्होंने उस अवस्थामें अपने कुलपुरोहित वसिष्ठजीका स्मरण किया ॥ ३६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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