॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
भगवान् श्रीराम की लीलाओं का वर्णन
ततो निष्क्रम्य लंकाया यातुधान्यः सहस्रशः ।
मन्दोदर्या समं तस्मिन् प्ररुदन्त्य उपाद्रवन् ॥ २४ ॥
स्वान् स्वान् बन्धून् परिष्वज्य लक्ष्मणेषुभिरर्दितान् ।
रुरुदुः सुस्वरं दीना घ्नन्त्य आत्मानमात्मना ॥ २५ ॥
हा हताः स्म वयं नाथ लोकरावण रावण ।
कं यायाच्छरणं लंका त्वद्विहीना परार्दिता ॥ २६ ॥
न वै वेद महाभाग भवान् कामवशं गतः ।
तेजोऽनुभावं सीताया येन नीतो दशामिमाम् ॥ २७ ॥
कृतैषा विधवा लंका वयं च कुलनन्दन ।
देहः कृतोऽन्नं गृध्राणां आत्मा नरकहेतवे ॥ २८ ॥
तदनन्तर हजारों राक्षसियाँ मन्दोदरीके साथ रोती हुर्ई लङ्कासे निकल
पड़ीं और रणभूमिमें आयीं ॥ २४ ॥ उन्होंने देखा कि उनके स्वजन-सम्बन्धी लक्ष्मणजीके
बाणोंसे छिन्न-भिन्न होकर पड़े हुए हैं। वे अपने हाथों अपनी छाती पीट-पीटकर और
अपने सगे-सम्बन्धियोंको हृदयसे लगा- लगाकर ऊँचे स्वरसे विलाप करने लगीं ॥ २५ ॥ हाय-हाय
! स्वामी ! आज हम सब बेमौत मारी गयीं। एक दिन वह था, जब आपके भयसे समस्त लोकोंमें त्राहि-त्राहि मच जाती थी। आज वह दिन आ
पहुँचा कि आपके न रहनेसे हमारे शत्रु लङ्काकी दुर्दशा कर रहे हैं और यह प्रश्न उठ
रहा है कि अब लङ्का किसके अधीन रहेगी ॥ २६ ॥ आप सब प्रकारसे सम्पन्न थे, किसी भी बातकी कमी न थी। परंतु आप कामके वश हो गये और यह नहीं सोचा कि
सीताजी कितनी तेजस्विनी हैं और उनका कितना प्रभाव है। आपकी यही भूल आपकी इस
दुर्दशाका कारण बन गयी ॥ २७ ॥ कभी आपके कामोंसे हम सब और समस्त राक्षसवंश आनन्दित
होता था और आज हम सब तथा यह सारी लङ्का नगरी विधवा हो गयी। आपका वह शरीर, जिसके लिये आपने सब कुछ कर डाला, आज गीधोंका आहार बन
रहा है और अपने आत्मा को आपने नरक का अधिकारी बना डाला। यह सब आपकी ही नासमझी और
कामुकताका फल है ॥ २८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌹🌹🌹🕉️ श्री राम जय राम जय जय राम 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंसियावर रामचंद्र भगवान की जय
जवाब देंहटाएंप्रभु श्री राम की जय हो 🙏🙏
जवाब देंहटाएंरघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीताराम
जय रघुनंदन जय सिया राम
जानकी वल्लभ सीता राम