सोमवार, 2 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –चौथा अध्याय..(पोस्ट०८)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध चौथा अध्याय..(पोस्ट०८)

नाभाग और अम्बरीष की कथा

दिशो नभः क्ष्मां विवरान् समुद्रान्
     लोकान् सपालान् त्रिदिवं गतः सः ।
 यतो यतो धावति तत्र तत्र
     सुदर्शनं दुष्प्रसहं ददर्श ॥ ५१ ॥
 अलब्धनाथः स सदा कुतश्चित्
     संत्रस्तचित्तोऽरणमेषमाणः ।
 देवं विरिञ्चं समगाद्विधातः
     त्राह्यात्मयोनेऽजिततेजसो माम् ॥ ५२ ॥
 श्रीब्रह्मोवाच ।
 स्थानं मदीयं सहविश्वमेतत्
     क्रीडावसाने द्विपरार्धसंज्ञे ।
 भ्रूभंगमात्रेण हि संदिधक्षोः
     कालात्मनो यस्य तिरोभविष्यति ॥ ५३ ॥
 अहं भवो दक्षभृगुप्रधानाः
     प्रजेशभूतेश सुरेशमुख्याः ।
 सर्वे वयं यत् नियमं प्रपन्ना
     मूर्ध्न्यर्पितं लोकहितं वहामः ॥ ५४ ॥
 प्रत्याख्यातो विरिञ्चेन विष्णुचक्रोपतापितः ।
 दुर्वासाः शरणं यातः शर्वं कैलासवासिनम् ॥ ५५ ॥

दुर्वासाजी दिशा, आकाश, पृथ्वी, अतल-वितल आदि नीचेके लोक, समुद्र, लोकपाल और उनके द्वारा सुरक्षित लोक एवं स्वर्गतकमें गये; परंतु जहाँ-जहाँ वे गये, वहीं-वहीं उन्होंने असह्य तेजवाले सुदर्शन चक्रको अपने पीछे लगा देखा ॥ ५१ ॥ जब उन्हें कहीं भी कोई रक्षक न मिला, तब तो वे और भी डर गये। अपने लिये त्राण ढूँढ़ते हुए वे देवशिरोमणि ब्रह्माजीके पास गये और बोले— ‘ब्रह्माजी ! आप स्वयम्भू हैं। भगवान्‌के इस तेजोमय चक्रसे मेरी रक्षा कीजिये॥ ५२ ॥
ब्रह्माजीने कहा—‘जब मेरी दो परार्धकी आयु समाप्त होगी और कालस्वरूप भगवान्‌ अपनी यह सृष्टि-लीला समेटने लगेंगे और इस जगत् को जलाना चाहेंगे, उस समय उनके भ्रूभङ्गमात्र से यह सारा संसार और मेरा यह लोक भी लीन हो जायगा ॥ ५३ ॥ मैं, शङ्करजी, दक्ष-भृगु आदि प्रजापति, भूतेश्वर, देवेश्वर आदि सब जिनके बनाये नियमोंमें बँधे हैं तथा जिनकी आज्ञा शिरोधार्य करके हमलोग संसारका हित करते हैं, (उनके भक्तके द्रोहीको बचानेके लिये हम समर्थ नहीं हैं)॥ ५४ ॥ जब ब्रह्माजीने इस प्रकार दुर्वासाको निराश कर दिया, तब भगवान्‌के चक्रसे संतप्त होकर वे कैलासवासी भगवान्‌ शङ्करकी शरणमें गये ॥ ५५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🌹🌿🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जी

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