॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –चौथा अध्याय..(पोस्ट०९)
नाभाग और अम्बरीष की कथा
श्रीरुद्र उवाच ।
वयं न तात प्रभवाम
भूम्नि
यस्मिन्
परेऽन्येऽप्यजजीवकोशाः ।
भवन्ति काले न
भवन्ति हीदृशाः
सहस्रशो यत्र
वयं भ्रमामः ॥ ५६ ॥
अहं सनत्कुमारश्च
नारदो भगवानजः ।
कपिलो अपान्तरतमो
देवलो धर्म आसुरिः ॥ ५७ ॥
मरीचिप्रमुखाश्चान्ये सिद्धेशाः पारदर्शनाः ।
विदाम न वयं सर्वे
यन्मायां माययाऽऽवृताः ॥ ५८ ॥
तस्य
विश्वेश्वरस्येदं शस्त्रं दुर्विषहं हि नः ।
तमेवं शरणं याहि
हरिस्ते शं विधास्यति ॥ ५९ ॥
ततो निराशो
दुर्वासाः पदं भगवतो ययौ ।
वैकुण्ठाख्यं
यदध्यास्ते श्रीनिवासः श्रिया सह ॥ ६० ॥
सन्दह्यमानोऽजितशस्त्रवह्निना
तत्पादमूले
पतितः सवेपथुः ।
आहाच्युतानन्त
सदीप्सित प्रभो
कृतागसं माव हि
विश्वभावन ॥ ६१ ॥
अजानता ते
परमानुभावं
कृतं मयाघं
भवतः प्रियाणाम् ।
विधेहि तस्यापचितिं
विधातः
मुच्येत
यन्नाम्न्युदिते नारकोऽपि ॥ ६२ ॥
श्रीमहादेवजी ने कहा—‘दुर्वासाजी ! जिन अनन्त परमेश्वर में ब्रह्मा-जैसे जीव और उनके उपाधिभूत कोश, इस ब्रह्माण्ड के समान ही अनेकों ब्रह्माण्ड समय पर पैदा होते हैं और समय आनेपर फिर उनका पता भी नहीं चलता, जिनमें हमारे-जैसे हजारों चक्कर काटते रहते हैं—उन प्रभुके सम्बन्धमें हम कुछ भी करनेकी सामथ्र्य नहीं रखते ॥ ५६ ॥ मैं, सनत्कुमार, नारद, भगवान् ब्रह्मा, कपिलदेव, अपान्तरतम, देवल, धर्म, आसुरि तथा मरीचि आदि दूसरे सर्वज्ञ सिद्धेश्वर—ये हम सभी भगवान्की मायाको नहीं जान सकते। क्योंकि हम उसी मायाके घेरेमें हैं ॥ ५७-५८ ॥ यह चक्र उन विश्वेश्वरका शस्त्र है। यह हमलोगोंके लिये असह्य है। तुम उन्हींकी शरणमें जाओ। वे भगवान् ही तुम्हारा मङ्गल करेंगे’ ॥ ५९ ॥ वहाँसे भी निराश होकर दुर्वासा भगवान्के परमधाम वैकुण्ठमें गये। लक्ष्मीपति भगवान् लक्ष्मीके साथ वहीं निवास करते हैं ॥ ६० ॥ दुर्वासाजी भगवान्के चक्रकी आगसे जल रहे थे। वे काँपते हुए भगवान्के चरणोंमें गिर पड़े। उन्होंने कहा—‘हे अच्युत ! हे अनन्त ! आप संतोंके एकमात्र वाञ्छनीय हैं। प्रभो ! विश्वके जीवनदाता ! मैं अपराधी हूँ। आप मेरी रक्षा कीजिये ॥ ६१ ॥ आपका परम प्रभाव न जाननेके कारण ही मैंने आपके प्यारे भक्तका अपराध किया है। प्रभो ! आप मुझे उससे बचाइये। आपके तो नामका ही उच्चारण करनेसे नारकी जीव भी मुक्त हो जाता है’ ॥ ६२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंJai Shri Krishna
जवाब देंहटाएं🌹🥀🍂जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री सीताराम
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