सोमवार, 9 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

राजा त्रिशङ्कु और हरिश्चन्द्र की कथा

त्रैशङ्‌कवो हरिश्चन्द्रो विश्वामित्रवसिष्ठयोः ।
यन्निमित्तमभूद् युद्धं पक्षिणोर्बहुवार्षिकम् ॥ ७ ॥
सोऽनपत्यो विषण्णात्मा नारदस्योपदेशतः ।
वरुणं शरणं यातः पुत्रो मे जायतां प्रभो ॥ ८ ॥
यदि वीरो महाराज तेनैव त्वां यजे इति ।
तथेति वरुणेनास्य पुत्रो जातस्तु रोहितः ॥ ९ ॥
जातः सुतो ह्यनेनाङ्‌ग मां यजस्वेति सोऽब्रवीत् ।
यदा पशुर्निर्दशः स्याद् अथ मेध्यो भवेदिति ॥ १० ॥
निर्दशे च स आगत्य यजस्वेत्याह सोऽब्रवीत् ।
दन्ताः पशोर्यत् जायेरन् अथ मेध्यो भवेदिति ॥ ११ ॥
दन्ता जाता यजस्वेति स प्रत्याहाथ सोऽब्रवीत् ।
यदा पतन्त्यस्य दन्ता अथ मेध्यो भवेदिति ॥ १२ ॥
पशोर्निपतिता दन्ता यजस्वेत्याह सोऽब्रवीत् ।
यदा पशोः पुनर्दन्ता जायन्तेऽथ पशुः शुचिः ॥ १३ ॥
पुनर्जाता यजस्वेति स प्रत्याहाथ सोऽब्रवीत् ।
सान्नाहिको यदा राजन् राजन्योऽथ पशुः शुचिः ॥ १४ ॥

त्रिशङ्कु के पुत्र थे हरिश्चन्द्र। उनके लिए विश्वामित्र और वसिष्ठ एक-दूसरे को शाप देकर पक्षी हो गये और बहुत वर्षों तक लड़ते रहे ॥ ७ ॥ हरिश्चन्द्र के कोई सन्तान न थी। इससे वे बहुत उदास रहा करते थे। नारदके उपदेश से वे वरुणदेवता की शरण में गये और उनसे प्रार्थना की कि प्रभो ! मुझे पुत्र प्राप्त हो ॥ ८ ॥ महाराज ! यदि मेरे वीर पुत्र होगा तो मैं उसी से आपका यजन करूँगा।वरुणने कहा—‘ठीक है।तब वरुणकी कृपासे हरिश्चन्द्र के रोहित नाम का पुत्र हुआ ॥ ९ ॥ पुत्र होते ही वरुणने आकर कहा—‘हरिश्चन्द्र ! तुम्हें पुत्र प्राप्त हो गया। अब इसके द्वारा मेरा यज्ञ करो।हरिश्चन्द्रने कहा—‘जब आपका यह यज्ञपशु (रोहित) दस दिन से अधिक का हो जायगा, तब यज्ञके योग्य होगा॥ १० ॥ दस दिन बीतनेपर वरुणने आकर फिर कहा—‘अब मेरा यज्ञ करो।हरिश्चन्द्रने कहा—‘जब आपके यज्ञपशु के मुँहमें दाँत निकल आयँगे, तब वह यज्ञके योग्य होगा॥ ११ ॥ दाँत उग आनेपर वरुणने कहा—‘अब इसके दाँत निकल आये, मेरा यज्ञ करो।हरिश्चन्द्रने कहा—‘जब इसके दूधके दाँत गिर जायँगे, तब यह यज्ञके योग्य होगा॥ १२ ॥ दूधके दाँत गिर जानेपर वरुणने कहा—‘अब इस यज्ञपशुके दाँत गिर गये, मेरा यज्ञ करो।हरिश्चन्द्रने कहा—‘जब इसके दुबारा दाँत आ जायँगे, तब यह पशु यज्ञके योग्य हो जायगा॥ १३ ॥ दाँतोंके फिर उग आनेपर वरुणने कहा—‘अब मेरा यज्ञ करो।हरिश्चन्द्रने कहा—‘वरुणजी महाराज ! क्षत्रिय पशु तब यज्ञके योग्य होता है, जब वह कवच धारण करने लगे॥ १४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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