गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

दुर्वासाजीकी दु:खनिवृत्ति

राजा तं अकृताहारः प्रत्यागमनकांक्षया ।
चरणौ उवुपसंगृह्य प्रसाद्य समभोजयत् ॥ १८ ॥
सोऽशित्वादृतमानीतं आतिथ्यं सार्वकामिकम् ।
तृप्तात्मा नृपतिं प्राह भुज्यतां इति सादरम् ॥ १९ ॥
प्रीतोऽस्मि अनुगृहीतोऽस्मि तव भागवतस्य वै ।
दर्शनस्पर्शनालापैः आतिथ्येनात्ममेधसा ॥ २० ॥
कर्मावदातं एतत् ते गायन्ति स्वःस्त्रियो मुहुः ।
कीर्तिं परमपुण्यां च कीर्तयिष्यति भूरियम् ॥ २१ ॥

श्रीशुक उवाच ।
एवं संकीर्त्य राजानं दुर्वासाः परितोषितः ।
ययौ विहायसाऽऽमंत्र्य ब्रह्मलोकमहैतुकम् ॥ २२ ॥

परीक्षित्‌ ! जबसे दुर्वासाजी भागे थे, तबसे अबतक राजा अम्बरीषने भोजन नहीं किया था। वे उनके लौटनेकी बाट देख रहे थे। अब उन्होंने दुर्वासाजीके चरण पकड़ लिये और उन्हें प्रसन्न करके विधिपूर्वक भोजन कराया ॥ १८ ॥ राजा अम्बरीष बड़े आदरसे अतिथिके योग्य सब प्रकारकी भोजन-सामग्री ले आये। दुर्वासाजी भोजन करके तृप्त हो गये। अब उन्होंने आदरसे कहा—‘राजन् ! अब आप भी भोजन कीजिये ॥ १९ ॥ अम्बरीष ! आप भगवान्‌के परम प्रेमी भक्त हैं। आपके दर्शन, स्पर्श, बातचीत और मनको भगवान्‌की ओर प्रवृत्त करनेवाले आतिथ्यसे मैं अत्यन्त प्रसन्न और अनुगृहीत हुआ हूँ ॥ २० ॥ स्वर्गकी देवाङ्गनाएँ बार-बार आपके इस उज्ज्वल चरित्रका गान करेंगी। यह पृथ्वी भी आपकी परम पुण्यमयी कीर्तिका संकीर्तन करती रहेगी॥ २१ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैंदुर्वासाजीने बहुत ही सन्तुष्ट होकर राजा अम्बरीषके गुणोंकी प्रशंसा की और उसके बाद उनसे अनुमति लेकर आकाशमार्गसे उस ब्रह्मलोककी यात्रा की, जो केवल निष्काम कर्मसे ही प्राप्त होता है ॥ २२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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