मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



इक्ष्वाकुवंश के शेष राजाओं का वर्णन

श्रीशुक उवाच ।

कुशस्य चातिथिस्तस्मात् निषधस्तत्सुतो नभः ।

पुण्डरीकोऽथ तत्पुत्रः क्षेमधन्वाभवत्ततः ॥ १ ॥

देवानीकस्ततोऽनीहः पारियात्रोऽथ तत्सुतः ।

ततो बलस्थलः तस्मात् वज्रनाभोऽर्कसंभवः ॥ २ ॥

खसगणः तत्सुतः तस्माद् विधृतिश्चाभवत्सुतः ।

ततो हिरण्यनाभोऽभूद् योगाचार्यस्तु जैमिनेः ॥ ३ ॥

शिष्यः कौशल्य आध्यात्मं याज्ञवल्क्योऽध्यगाद् यतः ।

योगं महोदयं ऋषिः हृदयग्रन्थि भेदकम् ॥ ४ ॥

पुष्यो हिरण्यनाभस्य ध्रुवसन्धिः ततोऽभवत् ।

सुदर्शनोऽथाग्निवर्णः शीघ्रस्तस्य मरुः सुतः ॥ ५ ॥

सोऽसावास्ते योगसिद्धः कलापग्राममास्थितः ।

कलेरन्ते सूर्यवंशं नष्टं भावयिता पुनः ॥ ६ ॥

तस्मात् प्रसुश्रुतः तस्य सन्धिः तस्याप्यमर्षणः ।

महस्वांन् तत्सुतः तस्माद् विश्वबाहुरजायत ॥ ७ ॥

ततः प्रसेनजित् तस्मात् तक्षको भविता पुनः ।

ततो बृहद्‍बलो यस्तु पित्रा ते समरे हतः ॥ ८ ॥


श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! कुश का पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषध का नभ, नभ का पुण्डरीक और पुण्डरीक का क्षेमधन्वा ॥ १ ॥ क्षेमधन्वा का देवानीक, देवानीक का अनीह, अनीहका पारियात्र, पारियात्र का बलस्थल और बलस्थल का पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्य का अंश था ॥ २ ॥ वज्रनाभ से खगण, खगण से विधृति और विधृति से हिरण्यनाभ की उत्पत्ति हुई। वह जैमिनि का  शिष्य और योगाचार्य था ॥ ३ ॥ कोसलदेशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि ने उसकी  शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्मयोगकी शिक्षा ग्रहण की थी। वह योग हृदयकी गाँठ काट देनेवाला तथा परम सिद्धि देनेवाला है ॥ ४ ॥ हिरण्यनाभका पुष्य, पुष्यका ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धिका सुदर्शन, सुदर्शन का अग्निवर्ण, अग्निवर्ण का शीघ्र और शीघ्र का पुत्र हुआ मरु ॥ ५ ॥ मरु ने योगसाधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राम में रहता है। कलियुगके अन्तमें सूर्यवंशके नष्ट हो जानेपर वह उसे फिरसे चलायेगा ॥ ६ ॥ मरुसे प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धि से अमर्षणका जन्म हुआ। अमर्षणका महस्वान् और महस्वान्का विश्वसाह्व ॥ ७ ॥ विश्वसाह्व का प्रसेनजित्, प्रसेनजित् का तक्षक और तक्षक का पुत्र बृहद्वल हुआ। परीक्षित्‌ ! इसी बृहद्वल को तुम्हारे पिता अभिमन्यु ने युद्धमें मार डाला था ॥ ८ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से






1 टिप्पणी:

  1. 🌼🍂🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१०)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१०) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन विश...