सोमवार, 23 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



भगवान्‌ श्रीराम की शेष लीलाओं का वर्णन


अथ प्रविष्टः स्वगृहं जुष्टं स्वैः पूर्वराजभिः ।

अनन्ताखिलकोषाढ्यं मनर्घ्योरुपरिच्छदम् ॥ ३१ ॥

विद्रुमोदुम्बरद्वारैः वैदूर्य स्तंभपङ्‌क्तिभिः ।

स्थलैर्मारकतैः स्वच्छैः भाजत्स्फटिकभित्तिभिः ॥ ३२ ॥

चित्रस्रग्भिः पट्टिकाभिः वासोमणिगणांशुकैः ।

मुक्ताफलैश्चिदुल्लासैः कान्तकामोपपत्तिभिः ॥ ३३ ॥

धूपदीपैः सुरभिभिः मण्डितं पुष्पमण्डनैः ।

स्त्रीपुम्भिः सुरसङ्‌काशैः जुष्टं भूषणभूषणैः ॥ ३४ ॥

तस्मिन् स भगवान् रामः स्निग्धया प्रिययेष्टया ।

रेमे स्वारामधीराणां ऋषभः सीतया किल ॥ ३५ ॥

बुभुजे च यथाकालं कामान् धर्ममपीडयन् ।

वर्षपूगान् बहून् नृणां अभिध्यातांघ्रिपल्लवः ॥ ३६ ॥


इस प्रकार प्रजाका निरीक्षण करके भगवान्‌ फिर अपने महलोंमें आ जाते । उनके वे महल पूर्ववर्ती राजाओं के द्वारा सेवित थे। उनमें इतने बड़े-बड़े सब प्रकारके खजाने थे, जो कभी समाप्त नहीं होते थे। वे बड़ी-बड़ी बहुमूल्य बहुत-सी सामग्रियोंसे सुसज्जित थे ॥ ३१ ॥ महलोंके द्वार तथा देहलियाँ मूँगेकी बनी हुई थीं। उनमें जो खंभे थे, वे वैदूर्यमणिके थे। मरकतमणिके बड़े सुन्दर-सुन्दर फर्श थे, तथा स्फटिकमणिकी दीवारें चमकती रहती थीं ॥ ३२ ॥ रगं-बिरंगी मालाओं, पताकाओं, मणियोंकी चमक, शुद्ध चेतनके समान उज्ज्वल मोती, सुन्दर-सुन्दर भोग- सामग्री, सुगन्धित धूप-दीप तथा फूलोंके गहनोंसे वे महल खूब सजाये हुए थे। आभूषणोंको भी भूषित करनेवाले देवताओंके समान स्त्री-पुरुष उसकी सेवामें लगे रहते थे ॥ ३३-३४ ॥ परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ श्रीरामजी आत्माराम जितेन्द्रिय पुरुषोंके शिरोमणि थे। उसी महल में वे अपनी प्राणप्रिया प्रेममयी पत्नी श्रीसीताजीके साथ विहार करते थे ॥ ३५ ॥ सभी स्त्री-पुरुष जिनके चरणकमलोंका ध्यान करते रहते हैं, वे ही भगवान्‌ श्रीराम बहुत वर्षोंतक धर्मकी मर्यादाका पालन करते हुए समयानुसार भोगोंका उपभोग करते रहे ॥ ३६ ॥



इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां

संहितायां नवमस्कन्धे एकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥



हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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