॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान् श्रीराम की शेष लीलाओं का
वर्णन
श्रीराजोवाच ।
कथं स भगवान् रामो भ्रातॄन् वा स्वयमात्मनः ।
तस्मिन् वा तेऽन्ववर्तन्त प्रजाः पौराश्च ईश्वरे ॥ २४ ॥
श्रीशुक उवाच ।
अथादिशद् दिग्विजये भ्रातॄन् त्रिभुवनेश्वरः ।
आत्मानं दर्शयन् स्वानां पुरीमैक्षत सानुगः ॥ २५ ॥
आसिक्तमार्गां गन्धोदैः करिणां मदशीकरैः ।
स्वामिनं प्राप्तमालोक्य मत्तां वा सुतरामिव ॥ २६ ॥
प्रासादगोपुरसभा चैत्यदेवगृहादिषु ।
विन्यस्तहेमकलशैः पताकाभिश्च मण्डिताम् ॥ २७ ॥
पूगैः सवृन्तै रम्भाभिः पट्टिकाभिः सुवाससाम् ।
आदर्शैरंशुकैः स्रग्भिः कृतकौतुकतोरणाम् ॥ २८ ॥
तं उपेयुस्तत्र तत्र पौरा अर्हणपाणयः ।
आशिषो युयुजुर्देव पाहीमां प्राक् त्वयोद्धृताम् ॥ २९ ॥
ततः प्रजा वीक्ष्य पतिं चिरागतं
दिदृक्षयोत्सृष्टगृहाः स्त्रियो नराः ।
आरुह्य हर्म्याण्यरविन्दलोचनं
अतृप्तनेत्राः कुसुमैरवाकिरन् ॥ ३० ॥
राजा परीक्षित्ने पूछा—भगवान् श्रीराम स्वयं अपने भाइयोंके साथ किस प्रकारका व्यवहार करते थे ? तथा भरत आदि भाई, प्रजाजन और अयोध्यावासी भगवान् श्रीरामके प्रति कैसा बर्ताव करते थे ? ॥ २४ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—त्रिभुवनपति महाराज श्रीराम ने राजसिंहासन स्वीकार करने के बाद अपने भाइयों को दिग्विजय की आज्ञा दी और स्वयं अपने निजजनों को दर्शन देते हुए अपने अनुचरोंके साथ वे पुरी की देख-रेख करने लगे ॥ २५ ॥ उस समय अयोध्यापुरी के मार्ग सुगन्धित जल और हाथियों के मदकणों से सिंचे रहते। ऐसा जान पड़ता, मानो यह नगरी अपने स्वामी भगवान् श्रीराम को देखकर अत्यन्त मतवाली हो रही है ॥ २६ ॥ उसके महल,फाटक,सभाभवन, विहार और देवालय आदि में सुवर्ण के कलश रखे हुऐ थे और स्थान-स्थानपर पताकाएँ फहरा रही थीं ॥ २७ ॥ वह डंठलसमेत सुपारी, केले के खंभे और सुन्दर वस्त्रों के पट्टों से सजायी हुई थी। दर्पण, वस्त्र और पुष्पमालाओंसे तथा माङ्गलिक चित्रकारियों और बंदनवारों से सारी नगरी जगमगा रही थी ॥ २८ ॥ नगरवासी अपने हाथोंमें तरह-तरहकी भेंटें लेकर भगवान् के पास आते और उनसे प्रार्थना करते कि ‘देव ! पहले आपने ही वराहरूप से पृथ्वीका उद्धार किया था; अब आप ही इसका पालन कीजिये ॥ २९ ॥ परीक्षित् ! उस समय जब प्रजा को मालूम होता कि बहुत दिनोंके बाद भगवान् श्रीराम जी इधर पधारे हैं, तब सभी स्त्री-पुरुष उनके दर्शन की लालसा से घर-द्वार छोडक़र दौड़ पड़ते। वे ऊँची-ऊँची अटारियों पर चढ़ जाते और अतृप्त नेत्रोंसे कमलनयन भगवान्को देखते हुए उनपर पुष्पोंकी वर्षा करते ॥ ३० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree K4ishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shri sita ram ji ki 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂🎋 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
राम राम जय राजा राम
राम राम जय सीता राम