॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
ऋचीक,
जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र
तस्य सत्यवतीं कन्यां ऋचीकोऽयाचत द्विजः ।
वरं विसदृशं मत्वा गाधिर्भार्गवमब्रवीत् ॥ ५ ॥
एकतः श्यामकर्णानां हयानां चन्द्रवर्चसाम् ।
सहस्रं दीयतां शुल्कं कन्यायाः कुशिका वयम् ॥ ६ ॥
इत्युक्तस्तन्मतं ज्ञात्वा गतः स वरुणान्तिकम् ।
आनीय दत्त्वा तान् अश्वान् उपयेमे वराननाम् ॥ ७ ॥
स ऋषिः प्रार्थितः पत्न्या श्वश्र्वा चापत्यकाम्यया ।
श्रपयित्वोभयैर्मन्त्रैः चरुं स्नातुं गतो मुनिः ॥ ८ ॥
तावत् सत्यवती मात्रा स्वचरुं याचिता सती ।
श्रेष्ठं मत्वा तयायच्छन् मात्रे मातुरदत् स्वयम् ॥ ९ ॥
तद् विज्ञाय मुनिः प्राह पत्नीं कष्टमकारषीः ।
घोरो दण्डधरः पुत्रो भ्राता ते ब्रह्मवित्तमः ॥ १० ॥
प्रसादितः सत्यवत्या मैवं भूरिति भार्गवः ।
अथ तर्हि भवेत् पौत्रो जमदग्निस्ततोऽभवत् ॥ ११ ॥
सा चाभूत् सुमहपुण्या कौशिकी लोकपावनी ।
रेणोः सुतां रेणुकां वै जमदग्निरुवाह याम् ॥ १२ ॥
तस्यां वै भार्गवऋषेः सुता वसुमदादयः ।
यवीयान्जज्ञ एतेषां राम इत्यभिविश्रुतः ॥ १३ ॥
यमाहुर्वासुदेवांशं हैहयानां कुलान्तकम् ।
त्रिःसप्तकृत्वो य इमां चक्रे निःक्षत्रियां महीम् ॥ १४ ॥
दुष्टं क्षत्रं भुवो भारं अब्रह्मण्यं अनीनशत् ।
रजस्तमोवृतमहन् फल्गुन्यपि कृतेंऽहसि ॥ १५ ॥
परीक्षित् ! गाधि की कन्या का नाम था सत्यवती। ऋचीक ऋृषि ने गाधि से उनकी कन्या माँगी। गाधि ने यह समझकर कि ये कन्या के योग्य वर नहीं है, ऋचीक से कहा— ॥ ५ ॥ ‘मुनिवर ! हमलोग कुशिक-वंशके हैं। हमारी कन्या मिलनी कठिन है। इसलिये आप एक हजार ऐसे घोड़े लाकर मुझे शुल्करूपमें दीजिये, जिनका सारा शरीर तो श्वेत हो, परंतु एक-एक कान श्याम वर्णका हो’ ॥ ६ ॥ जब गाधिने यह बात कही, तब ऋचीक मुनि उनका आशय समझ गये और वरुणके पास जाकर वैसे ही घोड़े ले आये तथा उन्हें देकर सुन्दरी सत्यवतीसे विवाह कर लिया ॥ ७ ॥ एक बार महर्षि ऋचीकसे उनकी पत्नी और सास दोनोंने ही पुत्रप्राप्तिके लिये प्रार्थना की। महर्षि ऋचीकने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके दोनोंके लिये अलग-अलग मन्त्रोंसे चरु पकाया और स्नान करनेके लिये चले गये ॥ ८ ॥ सत्यवतीकी माने यह समझकर कि ऋषिने अपनी पत्नीके लिये श्रेष्ठ चरु पकाया होगा, उससे वह चरु माँग लिया। इसपर सत्यवतीने अपना चरु तो मा को दे दिया और माका चरु वह स्वयं खा गयी ॥ ९ ॥ जब ऋचीक मुनिको इस बातका पता चला, तब उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवतीसे कहा कि ‘तुमने बड़ा अनर्थ कर डाला। अब तुम्हारा पुत्र तो लोगोंको दण्ड देनेवाला घोर प्रकृतिका होगा और तुम्हारा भाई होगा एक श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता’ ॥ १० ॥ सत्यवतीने ऋचीक मुनिको प्रसन्न किया और प्रार्थना की कि ‘स्वामी ! ऐसा नहीं होना चाहिये।’ तब उन्होंने कहा—‘अच्छी बात है। पुत्रके बदले तुम्हारा पौत्र वैसा (घोर प्रकृतिका) होगा।’ समयपर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ ॥ ११ ॥ सत्यवती समस्त लोकोंको पवित्र करनेवाली परम पुण्यमयी कौशिकी नदी बन गयी। रेणु ऋषिकी कन्या थी रेणुका। जमदग्रिने उसका पाणि- ग्रहण किया ॥ १२ ॥ रेणुका के गर्भ से जमदग्नि ऋषि के वसुमान् आदि कई पुत्र हुए। उनमें सबसे छोटे परशुरामजी थे। उनका यश सारे संसार में प्रसिद्ध है ॥ १३ ॥ कहते हैं कि हैहयवंश का अन्त करनेके लिये स्वयं भगवान् ने ही परशुराम के रूप में अंशावतार ग्रहण किया था। उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियहीन कर दिया ॥ १४ ॥ यद्यपि क्षत्रियों ने उनका थोड़ा-सा ही अपराध किया था—फिर भी वे लोग बड़े दुष्ट, ब्राह्मणों के अभक्त, रजोगुणी और विशेष करके तमोगुणी हो रहे थे। यही कारण था कि वे पृथ्वी के भार हो गये थे और इसी के फलस्वरूप भगवान् परशुराम ने उनका नाश करके पृथ्वी का भार उतार दिया ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएं❄️🌸❄️जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण