शनिवार, 21 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)



भगवान्‌ श्रीराम की शेष लीलाओं का वर्णन


श्रीशुक उवाच ।

भगवान् आत्मनात्मानं राम उत्तमकल्पकैः ।

सर्वदेवमयं देवं ईजे आचार्यवान् मखैः ॥ १ ॥

होत्रेऽददाद् दिशं प्राचीं ब्रह्मणे दक्षिणां प्रभुः ।

अध्वर्यवे प्रतीचीं वा उत्तरां सामगाय सः ॥ २ ॥

आचार्याय ददौ शेषां यावती भूस्तदन्तरा ।

मन्यमान इदं कृत्स्नं ब्राह्मणोऽर्हति निःस्पृहः ॥ ३ ॥

इत्ययं तदलङ्‌कार वासोभ्यामवशेषितः ।

तथा राज्ञ्यपि वैदेही सौमङ्‌गल्या अवशेषिता ॥ ४ ॥

ते तु ब्राह्मणदेवस्य वात्सल्यं वीक्ष्य संस्तुतम् ।

प्रीताः क्लिन्नधियस्तस्मै प्रत्यर्प्येदं बभाषिरे ॥ ५ ॥

अप्रत्तं नस्त्वया किं नु भगवन् भुवनेश्वर ।

यन्नोऽन्तर्हृदयं विश्य तमो हंसि स्वरोचिषा ॥ ६ ॥

नमो ब्रह्मण्यदेवाय रामायाकुण्ठमेधसे ।

उत्तमश्लोकधुर्याय न्यस्तदण्डार्पिताङ्‌घ्रये ॥ ७ ॥



श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! भगवान्‌ श्रीराम ने गुरु वसिष्ठजी को अपना आचार्य बनाकर उत्तम सामग्रियों से युक्त यज्ञोंके द्वारा अपने-आप ही अपने सर्वदेवस्वरूप स्वयंप्रकाश आत्माका यजन किया ॥ १ ॥ उन्होंने होता को पूर्व दिशा, ब्रह्माको दक्षिण, अध्वर्यु को पश्चिम और उद्गाता को उत्तर दिशा दे दी ॥ २ ॥ उनके बीच में जितनी भूमि बच रही थी, वह उन्होंने आचार्य को दे दी। उनका यह निश्चय था कि सम्पूर्ण भूमण्डल का एकमात्र अधिकारी नि:स्पृह ब्राह्मण ही है ॥ ३ ॥ इस प्रकार सारे भूमण्डल का दान करके उन्होंने अपने शरीरके वस्त्र और अलंकार ही अपने पास रखे। इसी प्रकार महारानी सीताजी के पास भी केवल माङ्गलिक वस्त्र और आभूषण ही बच रहे ॥ ४ ॥ जब आचार्य आदि ब्राह्मणोंने देखा कि भगवान्‌ श्रीराम तो ब्राह्मणोंको ही अपना इष्टदेव मानते हैं, उनके हृदयमें ब्राह्मणोंके प्रति अनन्त स्नेह है, तब उनका हृदय प्रेमसे द्रवित हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर सारी पृथ्वी भगवान्‌ को लौटा दी और कहा ॥ ५ ॥ प्रभो ! आप सब लोकोंके एकमात्र स्वामी हैं। आप तो हमारे हृदयके भीतर रहकर अपनी ज्योति से अज्ञानान्धकार का नाश कर रहे हैं। ऐसी स्थितिमें भला, आपने हमें क्या नहीं दे रखा है ॥ ६ ॥ आपका ज्ञान अनन्त है। पवित्र कीर्तिवाले पुरुषोंमें आप सर्वश्रेष्ठ हैं। उन महात्माओंको, जो किसीको किसी प्रकार की पीड़ा नहीं पहुँचाते, आपने अपने चरणकमल दे रखे हैं। ऐसा होने पर भी आप ब्राह्मणों को अपना इष्टदेव मानते हैं। भगवन् ! आपके इस रामरूप को हम नमस्कार करते हैं॥ ७ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🌹🌹🌹 रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीतायापतये नमः ॐ 🙏🙏🙏

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  3. मंगल भवन अमंगल हारी
    उमा सहित जेहिं जपत पुरारि
    दीन दयाल विरद संभारी
    हरहुं नाथ मम संकट भारी
    🪷🥀🪷जय श्री राम 🙏🙏

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