शनिवार, 21 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

नवम स्कन्ध ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)



भगवान्‌ श्रीराम की शेष लीलाओं का वर्णन


कदाचित् लोकजिज्ञासुः गूढो रात्र्यामलक्षितः ।

चरन् वाचोऽश्रृणोद् रामो भार्यां उद्दिश्य कस्यचित् ॥ ८ ॥

नाहं बिभर्मि त्वां दुष्टां असतीं परवेश्मगाम् ।

स्त्रैणो हि बिभृयात् सीतां रामो नाहं भजे पुनः ॥ ९ ॥

इति लोकाद् बहुमुखाद् दुराराध्यादसंविदः ।

पत्या भीतेन सा त्यक्ता प्राप्ता प्राचेतसाश्रमम् ॥ १० ॥

अन्तर्वत्‍न्यागते काले यमौ सा सुषुवे सुतौ ।

कुशो लव इति ख्यातौ तयोश्चक्रे क्रिया मुनिः ॥ ॥

अङ्‌गदश्चित्रकेतुश्च लक्ष्मणस्यात्मजौ स्मृतौ ।

तक्षः पुष्कल इत्यास्तां भरतस्य महीपते ॥ १२ ॥

सुबाहुः श्रुतसेनश्च शत्रुघ्नस्य बभूवतुः ।

गन्धर्वान् कोटिशो जघ्ने भरतो विजये दिशाम् ॥ १३ ॥

तदीयं धनमानीय सर्वं राज्ञे न्यवेदयत् ।

शत्रुघ्नश्च मधोः पुत्रं लवणं नाम राक्षसम् ।

हत्वा मधुवने चक्रे मथुरां नाम वै पुरीम् ॥ १४ ॥


परीक्षित्‌ ! एक बार अपनी प्रजाकी स्थिति जानने के लिये भगवान्‌ श्रीराम जी रात के समय छिपकर बिना किसी को बतलाये घूम रहे थे। उस समय उन्होंने किसी की यह बात सुनी। वह अपनी पत्नीसे कह रहा था ॥ ८ ॥ अरी ! तू दुष्ट और कुलटा है। तू पराये घरमें रह आयी है। स्त्री-लोभी राम भले ही सीताको रख लें, परंतु मैं तुझे फिर नहीं रख सकता॥ ९ ॥ सचमुच सब लोगोंको प्रसन्न रखना टेढ़ी खीर है। क्योंकि मूर्खों की तो कमी नहीं है। जब भगवान्‌ श्रीराम ने बहुतोंके मुँहसे ऐसी बात सुनी, तो वे लोकापवाद से कुछ भयभीत-से हो गये। उन्होंने श्रीसीताजी का परित्याग कर दिया और वे वाल्मीकिमुनि के आश्रममें रहने लगीं ॥ १० ॥ सीताजी उस समय गर्भवती थीं। समय आनेपर उन्होंने एक साथ ही दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हुएकुश और लव। वाल्मीकि मुनि ने उनके जातकर्मादि संस्कार किये ॥ ११ ॥ लक्ष्मणजी के दो पुत्र हुएअंगद और चित्रकेतु। परीक्षित्‌ ! इसी प्रकार भरतजीके भी दो ही पुत्र थेतक्ष और पुष्कल ॥ १२ ॥ तथा शत्रुघ्न के भी दो पुत्र हुएसुबाहु और श्रुतसेन। भरतजी ने दिग्विजय में करोड़ों गन्धर्वों का संहार किया ॥ १३ ॥ उन्होंने उनका सब धन लाकर अपने बड़े भाई भगवान्‌ श्रीरामकी सेवामें निवेदन किया। शत्रुघ्नजी ने मधुवनमें मधु के पुत्र लवण नामक राक्षसको मारकर वहाँ मथुरा नामकी पुरी बसायी ॥ १४ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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