॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पहला अध्याय..(पोस्ट०२)
भगवान्
के द्वारा पृथ्वी को आश्वासन, वसुदेव-देवकी का
विवाह
और
कंस के द्वारा देवकी के छ: पुत्रों हत्या
रोहिण्यास्तनयः
प्रोक्तो रामः संकर्षणस्त्वया ।
देवक्या
गर्भसंबंधः कुतो देहान्तरं विना ॥ ८ ॥
कस्मात्
मुकुन्दो भगवान् पितुर्गेहाद् व्रजं गतः ।
क्व
वासं ज्ञातिभिः सार्धं कृतवान् सात्वतां पतिः ॥ ९ ॥
व्रजे
वसन् किं अकरोत् मधुपुर्यां च केशवः ।
भ्रातरं
चावधीत् कंसं मातुः अद्धा अतदर्हणम् ॥ १० ॥
देहं
मानुषमाश्रित्य कति वर्षाणि वृष्णिभिः ।
यदुपुर्यां
सहावात्सीत् पत्न्यः कत्यभवन् प्रभोः ॥ ११ ॥
एतत्
अन्यच्च सर्वं मे मुने कृष्णविचेष्टितम् ।
वक्तुमर्हसि
सर्वज्ञ श्रद्दधानाय विस्तृतम् ॥ १२ ॥
नैषातिदुःसहा
क्षुन्मां त्यक्तोदं अपि बाधते ।
पिबन्तं
त्वन्मुखाम्भोज अच्युतं हरिकथामृतम् ॥ १३ ॥
भगवन्
! आपने अभी बतलाया था कि बलरामजी रोहिणीके पुत्र थे। इसके बाद देवकीके पुत्रोंमें
भी आपने उनकी गणना की। दूसरा शरीर धारण किये बिना दो माताओंका पुत्र होना कैसे
सम्भव है ?
॥ ८ ॥ असुरों को मुक्ति देनेवाले और भक्तों को प्रेम वितरण करनेवाले
भगवान् श्रीकृष्ण अपने वात्सल्य-स्नेहसे भरे हुए पिताका घर छोडक़र व्रजमें क्यों
चले गये ? यदुवंश- शिरोमणि भक्तवत्सल प्रभु ने नन्द आदि गोप-बन्धुओंके
साथ कहाँ-कहाँ निवास किया? ॥ ९ ॥ ब्रह्मा और शङ्कर का भी
शासन करनेवाले प्रभु ने व्रज में तथा मधुपुरी में रहकर कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं ?
और महाराज ! उन्होंने अपनी माँ के भाई अपने मामा कंस को अपने हाथों
क्यों मार डाला ? वह मामा होनेके कारण उनके द्वारा मारे जाने
योग्य तो नहीं था ॥ १० ॥ मनुष्याकार सच्चिदानन्दमय विग्रह प्रकट करके
द्वारकापुरीमें यदुवंशियोंके साथ उन्होंने कितने वर्षों तक निवास किया ? और उन सर्वशक्तिमान् प्रभु की पत्नियाँ कितनी थीं ? ॥
११ ॥ मुने ! मैंने श्रीकृष्ण की जितनी लीलाएँ पूछी हैं और जो नहीं पूछी हैं,
वे सब आप मुझे विस्तार से सुनाइये; क्योंकि आप
सब कुछ जानते हैं और मैं बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें सुनना चाहता हूँ ॥ १२ ॥ भगवन्
! अन्नकी तो बात ही क्या, मैंने जल का भी परित्याग कर दिया
है। फिर भी वह असह्य भूख-प्यास (जिसके कारण मैंने मुनिके गले में मृत सर्प डालने
का अन्याय किया था) मुझे तनिक भी नहीं सता रही है; क्योंकि
मैं आपके मुखकमल से झरती हुई भगवान् की सुधामयी लीला-कथा का पान कर रहा हूँ ॥ १३
॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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