रविवार, 26 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पहला अध्याय..(पोस्ट०२)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) पहला अध्याय..(पोस्ट०२)



भगवान्‌ के द्वारा पृथ्वी को आश्वासन, वसुदेव-देवकी का विवाह

और कंस के द्वारा देवकी के छ: पुत्रों  हत्या



रोहिण्यास्तनयः प्रोक्तो रामः संकर्षणस्त्वया ।

देवक्या गर्भसंबंधः कुतो देहान्तरं विना ॥ ८ ॥

कस्मात् मुकुन्दो भगवान् पितुर्गेहाद् व्रजं गतः ।

क्व वासं ज्ञातिभिः सार्धं कृतवान् सात्वतां पतिः ॥ ९ ॥

व्रजे वसन् किं अकरोत् मधुपुर्यां च केशवः ।

भ्रातरं चावधीत् कंसं मातुः अद्धा अतदर्हणम् ॥ १० ॥

देहं मानुषमाश्रित्य कति वर्षाणि वृष्णिभिः ।

यदुपुर्यां सहावात्सीत् पत्‍न्यः कत्यभवन् प्रभोः ॥ ११ ॥

एतत् अन्यच्च सर्वं मे मुने कृष्णविचेष्टितम् ।

वक्तुमर्हसि सर्वज्ञ श्रद्दधानाय विस्तृतम् ॥ १२ ॥

नैषातिदुःसहा क्षुन्मां त्यक्तोदं अपि बाधते ।

पिबन्तं त्वन्मुखाम्भोज अच्युतं हरिकथामृतम् ॥ १३ ॥



भगवन् ! आपने अभी बतलाया था कि बलरामजी रोहिणीके पुत्र थे। इसके बाद देवकीके पुत्रोंमें भी आपने उनकी गणना की। दूसरा शरीर धारण किये बिना दो माताओंका पुत्र होना कैसे सम्भव है ? ॥ ८ ॥ असुरों को मुक्ति देनेवाले और भक्तों को प्रेम वितरण करनेवाले भगवान्‌ श्रीकृष्ण अपने वात्सल्य-स्नेहसे भरे हुए पिताका घर छोडक़र व्रजमें क्यों चले गये ? यदुवंश- शिरोमणि भक्तवत्सल प्रभु ने नन्द आदि गोप-बन्धुओंके साथ कहाँ-कहाँ निवास किया? ॥ ९ ॥ ब्रह्मा और शङ्कर का भी शासन करनेवाले प्रभु ने व्रज में तथा मधुपुरी में रहकर कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं ? और महाराज ! उन्होंने अपनी माँ के भाई अपने मामा कंस को अपने हाथों क्यों मार डाला ? वह मामा होनेके कारण उनके द्वारा मारे जाने योग्य तो नहीं था ॥ १० ॥ मनुष्याकार सच्चिदानन्दमय विग्रह प्रकट करके द्वारकापुरीमें यदुवंशियोंके साथ उन्होंने कितने वर्षों तक निवास किया ? और उन सर्वशक्तिमान् प्रभु की पत्नियाँ कितनी थीं ? ॥ ११ ॥ मुने ! मैंने श्रीकृष्ण की जितनी लीलाएँ पूछी हैं और जो नहीं पूछी हैं, वे सब आप मुझे विस्तार से सुनाइये; क्योंकि आप सब कुछ जानते हैं और मैं बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें सुनना चाहता हूँ ॥ १२ ॥ भगवन् ! अन्नकी तो बात ही क्या, मैंने जल का भी परित्याग कर दिया है। फिर भी वह असह्य भूख-प्यास (जिसके कारण मैंने मुनिके गले में मृत सर्प डालने का अन्याय किया था) मुझे तनिक भी नहीं सता रही है; क्योंकि मैं आपके मुखकमल से झरती हुई भगवान्‌ की सुधामयी लीला-कथा का पान कर रहा हूँ ॥ १३ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


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