॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
भगवान्
का गर्भ-प्रवेश और देवताओं द्वारा गर्भ-स्तुति
त्वय्यम्बुजाक्षाखिलसत्त्वधाम्नि
समाधिनावेशितचेतसैके
त्वत्पादपोतेन
महत्कृतेन
कुर्वन्ति
गोवत्सपदं भवाब्धिम् ॥ ३० ॥
स्वयं
समुत्तीर्य सुदुस्तरं द्युमन्
भवार्णवं
भीममदभ्रसौहृदाः
भवत्पदाम्भोरुहनावमत्र
ते
निधाय
याताः सदनुग्रहो भवान् ॥ ३१ ॥
येऽन्येऽरविन्दाक्ष
विमुक्तमानिनस्
त्वय्यस्तभावादविशुद्धबुद्धयः
आरुह्य
कृच्छ्रेण परं पदं ततः
पतन्त्यधोऽनादृतयुष्मदङ्घ्रयः
॥ ३२ ॥
तथा
न ते माधव तावकाः क्वचिद्-
भ्रश्यन्ति
मार्गात्त्वयि बद्धसौहृदाः
त्वयाभिगुप्ता
विचरन्ति निर्भया
विनायकानीकपमूर्धसु
प्रभो ॥ ३३ ॥
कमलके
समान कोमल अनुग्रहभरे नेत्रोंवाले प्रभो ! कुछ बिरले लोग ही आपके समस्त पदार्थों
और प्राणियोंके आश्रयस्वरूप रूपमें पूर्ण एकाग्रतासे अपना चित्त लगा पाते हैं और
आपके चरणकमलरूपी जहाज का आश्रय लेकर इस संसारसागर को बछड़े के खुर के गढ़े के समान
अनायास ही पार कर जाते हैं । क्यों न हो, अबतकके संतोंने इसी
जहाजसे संसारसागरको पार जो किया है ॥ ३० ॥ परम प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आपके
भक्तजन सारे जगत् के निष्कपट प्रेमी, सच्चे हितैषी होते हैं
। वे स्वयं तो इस भयङ्कर और कष्टसे पार करनेयोग्य संसारसागरको पार कर ही जाते हैं,
किन्तु औरों के कल्याण के लिये भी वे यहाँ आपके चरण-कमलोंकी नौका
स्थापित कर जाते हैं । वास्तवमें सत्पुरुषोंपर आपकी महान् कृपा है । उनके लिये आप
अनुग्रहस्वरूप ही हैं ॥ ३१ ॥ कमलनयन ! जो लोग आपके चरणकमलोंकी शरण नहीं लेते तथा
आपके प्रति भक्तिभावसे रहित होनेके कारण जिनकी बुद्धि भी शुद्ध नहीं है, वे अपनेको झूठ-मूठ मुक्त मानते हैं । वास्तवमें तो वे बद्ध ही हैं । वे
यदि बड़ी तपस्या और साधनाका कष्ट उठाकर किसी प्रकार ऊँचे-से-ऊँचे पदपर भी पहुँच
जायँ, तो भी वहाँसे नीचे गिर जाते हैं ॥ ३२ ॥ परंतु भगवन् !
जो आपके अपने निज जन हैं, जिन्होंने आपके चरणोंमें अपनी
सच्ची प्रीति जोड़ रखी है, वे कभी उन ज्ञानाभिमानियों की
भाँति अपने साधन-मार्गसे गिरते नहीं। प्रभो ! वे बड़े-बड़े विघ्र डालनेवालों की
सेना के सरदारों के सिर पर पैर रखकर निर्भय विचरते हैं, कोई
भी विघ्न उनके मार्गमें रुकावट नहीं डाल सकते; क्योंकि उनके
रक्षक आप जो हैं ॥ ३३ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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