॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
गोकुल
में भगवान् का जन्ममहोत्सव
श्रीनंद
उवाच ।
अहो
ते देवकी पुत्राः कंसेन बहवो हताः ।
एकावशिष्टावरजा
कन्या सापि दिवं गता ॥ २९ ॥
नूनं
ह्यदृष्टनिष्ठोऽयं अदृष्टपरमो जनः ।
अदृष्टमात्मनस्तत्त्वं
यो वेद न स मुह्यति ॥ ३० ॥
श्रीवसुदेव
उवाच ।
करो
वै वार्षिको दत्तो राज्ञे दृष्टा वयं च वः ।
नेह
स्थेयं बहुतिथं सन्त्युत्पाताश्च गोकुले ॥ ३१ ॥
श्रीशुक
उवाच ।
इति
नंदादयो गोपाः प्रोक्तास्ते शौरिणा ययुः ।
अनोभिः
अनडुद्युक्तैः तं अनुज्ञाप्य गोकुलम् ॥ ३२ ॥
नन्दबाबा
ने कहा—भाई वसुदेव ! कंसने देवकीके गर्भ से
उत्पन्न तुम्हारे कई पुत्र मार डाले । अन्तमें एक सबसे छोटी कन्या बच रही थी,
वह भी स्वर्ग सिधार गयी ॥ २९ ॥ इसमें सन्देह नहीं कि प्राणियोंका
सुख-दु:ख भाग्यपर ही अवलम्बित है । भाग्य ही प्राणीका एकमात्र आश्रय है । जो जान
लेता है कि जीवनके सुख-दु:खका कारण भाग्य ही है, वह उनके
प्राप्त होनेपर मोहित नहीं होता ॥ ३० ॥
वसुदेवजीने
कहा—भाई ! तुमने राजा कंसको उसका सालाना कर चुका दिया। हम दोनों मिल भी चुके।
अब तुम्हें यहाँ अधिक दिन नहीं ठहरना चाहिये; क्योंकि आजकल
गोकुलमें बड़े-बड़े उत्पात हो रहे हैं ॥ ३१ ॥
श्रीशुकदेवजी
कहते हैं—परीक्षित् ! जब वसुदेवजी ने इस प्रकार कहा, तब नन्द
आदि गोपोंने उनसे अनुमति ले, बैलों से जुते हुए छकड़ों पर
सवार होकर गोकुल की यात्रा की ॥ ३२ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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