बुधवार, 13 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

गोकुल में भगवान्‌ का जन्ममहोत्सव

श्रीनंद उवाच ।
अहो ते देवकी पुत्राः कंसेन बहवो हताः ।
एकावशिष्टावरजा कन्या सापि दिवं गता ॥ २९ ॥
नूनं ह्यदृष्टनिष्ठोऽयं अदृष्टपरमो जनः ।
अदृष्टमात्मनस्तत्त्वं यो वेद न स मुह्यति ॥ ३० ॥

श्रीवसुदेव उवाच ।
करो वै वार्षिको दत्तो राज्ञे दृष्टा वयं च वः ।
नेह स्थेयं बहुतिथं सन्त्युत्पाताश्च गोकुले ॥ ३१ ॥

श्रीशुक उवाच ।
इति नंदादयो गोपाः प्रोक्तास्ते शौरिणा ययुः ।
अनोभिः अनडुद्युक्तैः तं अनुज्ञाप्य गोकुलम् ॥ ३२ ॥

नन्दबाबा ने कहाभाई वसुदेव ! कंसने देवकीके  गर्भ से उत्पन्न तुम्हारे कई पुत्र मार डाले । अन्तमें एक सबसे छोटी कन्या बच रही थी, वह भी स्वर्ग सिधार गयी ॥ २९ ॥ इसमें सन्देह नहीं कि प्राणियोंका सुख-दु:ख भाग्यपर ही अवलम्बित है । भाग्य ही प्राणीका एकमात्र आश्रय है । जो जान लेता है कि जीवनके सुख-दु:खका कारण भाग्य ही है, वह उनके प्राप्त होनेपर मोहित नहीं होता ॥ ३० ॥
वसुदेवजीने कहाभाई ! तुमने राजा कंसको उसका सालाना कर चुका दिया। हम दोनों मिल भी चुके। अब तुम्हें यहाँ अधिक दिन नहीं ठहरना चाहिये; क्योंकि आजकल गोकुलमें बड़े-बड़े उत्पात हो रहे हैं ॥ ३१ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जब वसुदेवजी ने इस प्रकार कहा, तब नन्द आदि गोपोंने उनसे अनुमति ले, बैलों से जुते हुए छकड़ों पर सवार होकर गोकुल की यात्रा की ॥ ३२ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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