॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
नामकरण-संस्कार
और बाललीला
श्रीशुक
उवाच ।
एवं
संप्रार्थितो विप्रः स्वचिकीर्षितमेव तत् ।
चकार
नामकरणं गूढो रहसि बालयोः ॥ ११ ॥
श्रीगर्ग
उवाच ।
अयं
हि रोहिणीपुत्रो रमयन् सुहृदो गुणैः ।
आख्यास्यते
राम इति बलाधिक्याद् बलं विदुः ।
यदूनामपृथग्भावात्
सङ्कर्षणमुशन्त्युत ॥ १२ ॥
आसन्
वर्णास्त्रयो ह्यस्य गृह्णतोऽनुयुगं तनूः ।
शुक्लो
रक्तस्तथा पीत इदानीं कृष्णतां गतः ॥ १३ ॥
प्रागयं
वसुदेवस्य क्वचित् जातस्तवात्मजः ।
वासुदेव
इति श्रीमान् अभिज्ञाः संप्रचक्षते ॥ १४ ॥
बहूनि
सन्ति नामानि रूपाणि च सुतस्य ते ।
गुणकर्मानुरूपाणि
तान्यहं वेद नो जनाः ॥ १५ ॥
एष
वः श्रेय आधास्यद् गोपगोकुल-नन्दनः ।
अनेन
सर्वदुर्गाणि यूयं अञ्जस्तरिष्यथ ॥ १६ ॥
पुरानेन
व्रजपते साधवो दस्युपीडिताः ।
अराजके
रक्ष्यमाणा जिग्युर्दस्यून् समेधिताः ॥ १७ ॥
य
एतस्मिन् महाभागाः प्रीतिं कुर्वन्ति मानवाः ।
नारयोऽभिभवन्त्येतान्
विष्णुपक्षानिवासुराः ॥ १८ ॥
तस्मात्
नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः ।
श्रिया
कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥ १९ ॥
श्रीशुक
उवाच ।
इत्यात्मानं
समादिश्य गर्गे च स्वगृहं गते ।
नन्दः
प्रमुदितो मेने आत्मानं पूर्णमाशिषाम् ॥ २० ॥
श्रीशुकदेवजी
कहते हैं—गर्गाचार्यजी तो संस्कार करना चाहते ही थे । जब नन्दबाबा ने उनसे इस
प्रकार प्रार्थना की, तब उन्होंने एकान्त में छिपकर गुप्तरूप
से दोनों बालकोंका नामकरण-संस्कार कर दिया ॥ ११ ॥
गर्गाचार्यजीने
कहा—‘यह रोहिणीका पुत्र है । इसलिये इसका नाम होगा रौहिणेय । यह अपने
सगे-सम्बन्धी और मित्रोंको अपने गुणोंसे अत्यन्त आनन्दित करेगा । इसलिये इसका
दूसरा नाम होगा ‘राम’ । इसके बलकी कोई
सीमा नहीं है, अत: इसका एक नाम ‘बल’
भी है । यह यादवोंमें और तुमलोगोंमें कोई भेदभाव नहीं रखेगा और
लोगोंमें फूट पडऩेपर मेल करावेगा, इसलिये इसका एक नाम ‘सङ्कर्षण’ भी है ॥ १२ ॥ और यह जो साँवला-साँवला है,
यह प्रत्येक युगमें शरीर ग्रहण करता है । पिछले युगोंमें इसने
क्रमश: श्वेत, रक्त और पीत—ये तीन
विभिन्न रंग स्वीकार किये थे । अबकी यह कृष्णवर्ण हुआ है । इसलिये इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा ॥ १३ ॥ नन्दजी ! यह तुम्हारा पुत्र पहले
कभी वसुदेवजीके घर भी पैदा हुआ था, इसलिये इस रहस्यको
जाननेवाले लोग इसे ‘श्रीमान् वासुदेव’ भी
कहते हैं ॥ १४ ॥ तुम्हारे पुत्रके और भी बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं ।
इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग
नाम पड़ जाते हैं । मैं तो उन नामोंको जानता हूँ, परंतु
संसारके साधारण लोग नहीं जानते ॥ १५ ॥ यह तुमलोगोंका परम कल्याण करेगा । समस्त गोप
और गौओंको यह बहुत ही आनन्दित करेगा । इसकी सहायतासे तुमलोग बड़ी-बड़ी विपत्तियोंको
बड़ी सुगमतासे पार कर लोगे ॥ १६ ॥ व्रजराज ! पहले युगकी बात है । एक बार पृथ्वीमें
कोई राजा नहीं रह गया था । डाकुओंने चारों ओर लूट-खसोट मचा रखी थी । तब तुम्हारे
इसी पुत्रने सज्जन पुरुषोंकी रक्षा की और इससे बल पाकर उन लोगोंने लुटेरोंपर विजय
प्राप्त की ॥ १७ ॥ जो मनुष्य तुम्हारे इस साँवले-सलोने शिशुसे प्रेम करते हैं । वे
बड़े भाग्यवान् हैं । जैसे विष्णुभगवान्के करकमलोंकी छत्रछायामें रहनेवाले
देवताओंको असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम
करनेवालोंको भीतर या बाहर किसी भी प्रकारके शत्रु नहीं जीत सकते ॥ १८ ॥ नन्दजी !
चाहे जिस दृष्टिसे देखें—गुणमें, सम्पत्ति
और सौन्दर्यमें, कीर्ति और प्रभावमें तुम्हारा यह बालक
साक्षात् भगवान् नारायणके समान है । तुम बड़ी सावधानी और तत्परतासे इसकी रक्षा
करो’ ॥ १९ ॥ इस प्रकार नन्दबाबाको भलीभाँति समझाकर, आदेश देकर गर्गाचार्यजी अपने आश्रमको लौट गये । उनकी बात सुनकर नन्दबाबाको
बड़ा ही आनन्द हुआ । उन्होंने ऐसा समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएँ पूरी हो गयीं,
मैं अब कृतकृत्य हूँ ॥ २० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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