बुधवार, 20 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

नामकरण-संस्कार और बाललीला

श्रीशुक उवाच ।
एवं संप्रार्थितो विप्रः स्वचिकीर्षितमेव तत् ।
चकार नामकरणं गूढो रहसि बालयोः ॥ ११ ॥

श्रीगर्ग उवाच ।
अयं हि रोहिणीपुत्रो रमयन् सुहृदो गुणैः ।
आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदुः ।
यदूनामपृथग्भावात् सङ्‌कर्षणमुशन्त्युत ॥ १२ ॥
आसन् वर्णास्त्रयो ह्यस्य गृह्णतोऽनुयुगं तनूः ।
शुक्लो रक्तस्तथा पीत इदानीं कृष्णतां गतः ॥ १३ ॥
प्रागयं वसुदेवस्य क्वचित् जातस्तवात्मजः ।
वासुदेव इति श्रीमान् अभिज्ञाः संप्रचक्षते ॥ १४ ॥
बहूनि सन्ति नामानि रूपाणि च सुतस्य ते ।
गुणकर्मानुरूपाणि तान्यहं वेद नो जनाः ॥ १५ ॥
एष वः श्रेय आधास्यद् गोपगोकुल-नन्दनः ।
अनेन सर्वदुर्गाणि यूयं अञ्जस्तरिष्यथ ॥ १६ ॥
पुरानेन व्रजपते साधवो दस्युपीडिताः ।
अराजके रक्ष्यमाणा जिग्युर्दस्यून् समेधिताः ॥ १७ ॥
य एतस्मिन् महाभागाः प्रीतिं कुर्वन्ति मानवाः ।
नारयोऽभिभवन्त्येतान् विष्णुपक्षानिवासुराः ॥ १८ ॥
तस्मात् नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः ।
श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥ १९ ॥

श्रीशुक उवाच ।
इत्यात्मानं समादिश्य गर्गे च स्वगृहं गते ।
नन्दः प्रमुदितो मेने आत्मानं पूर्णमाशिषाम् ॥ २० ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंगर्गाचार्यजी तो संस्कार करना चाहते ही थे । जब नन्दबाबा ने उनसे इस प्रकार प्रार्थना की, तब उन्होंने एकान्त में छिपकर गुप्तरूप से दोनों बालकोंका नामकरण-संस्कार कर दिया ॥ ११ ॥
गर्गाचार्यजीने कहा—‘यह रोहिणीका पुत्र है । इसलिये इसका नाम होगा रौहिणेय । यह अपने सगे-सम्बन्धी और मित्रोंको अपने गुणोंसे अत्यन्त आनन्दित करेगा । इसलिये इसका दूसरा नाम होगा राम। इसके बलकी कोई सीमा नहीं है, अत: इसका एक नाम बलभी है । यह यादवोंमें और तुमलोगोंमें कोई भेदभाव नहीं रखेगा और लोगोंमें फूट पडऩेपर मेल करावेगा, इसलिये इसका एक नाम सङ्कर्षणभी है ॥ १२ ॥ और यह जो साँवला-साँवला है, यह प्रत्येक युगमें शरीर ग्रहण करता है । पिछले युगोंमें इसने क्रमश: श्वेत, रक्त और पीतये तीन विभिन्न रंग स्वीकार किये थे । अबकी यह कृष्णवर्ण हुआ है । इसलिये इसका नाम कृष्णहोगा ॥ १३ ॥ नन्दजी ! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेवजीके घर भी पैदा हुआ था, इसलिये इस रहस्यको जाननेवाले लोग इसे श्रीमान् वासुदेवभी कहते हैं ॥ १४ ॥ तुम्हारे पुत्रके और भी बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं । इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं । मैं तो उन नामोंको जानता हूँ, परंतु संसारके साधारण लोग नहीं जानते ॥ १५ ॥ यह तुमलोगोंका परम कल्याण करेगा । समस्त गोप और गौओंको यह बहुत ही आनन्दित करेगा । इसकी सहायतासे तुमलोग बड़ी-बड़ी विपत्तियोंको बड़ी सुगमतासे पार कर लोगे ॥ १६ ॥ व्रजराज ! पहले युगकी बात है । एक बार पृथ्वीमें कोई राजा नहीं रह गया था । डाकुओंने चारों ओर लूट-खसोट मचा रखी थी । तब तुम्हारे इसी पुत्रने सज्जन पुरुषोंकी रक्षा की और इससे बल पाकर उन लोगोंने लुटेरोंपर विजय प्राप्त की ॥ १७ ॥ जो मनुष्य तुम्हारे इस साँवले-सलोने शिशुसे प्रेम करते हैं । वे बड़े भाग्यवान् हैं । जैसे विष्णुभगवान्‌के करकमलोंकी छत्रछायामें रहनेवाले देवताओंको असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम करनेवालोंको भीतर या बाहर किसी भी प्रकारके शत्रु नहीं जीत सकते ॥ १८ ॥ नन्दजी ! चाहे जिस दृष्टिसे देखेंगुणमें, सम्पत्ति और सौन्दर्यमें, कीर्ति और प्रभावमें तुम्हारा यह बालक साक्षात् भगवान्‌ नारायणके समान है । तुम बड़ी सावधानी और तत्परतासे इसकी रक्षा करो॥ १९ ॥ इस प्रकार नन्दबाबाको भलीभाँति समझाकर, आदेश देकर गर्गाचार्यजी अपने आश्रमको लौट गये । उनकी बात सुनकर नन्दबाबाको बड़ा ही आनन्द हुआ । उन्होंने ऐसा समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएँ पूरी हो गयीं, मैं अब कृतकृत्य हूँ ॥ २० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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