रविवार, 31 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

गोकुल से वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार

श्रीशुक उवाच ।
गोपा नन्दादयः श्रुत्वा द्रुमयोः पततो रवम् ।
तत्राजग्मुः कुरुश्रेष्ठ निर्घातभयशङ्‌किताः ॥ १ ॥
भूम्यां निपतितौ तत्र ददृशुर्यमलार्जुनौ ।
बभ्रमुस्तदविज्ञाय लक्ष्यं पतनकारणम् ॥ २ ॥
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्ना बद्धं च बालकम् ।
कस्येदं कुत आश्चर्यं उत्पात इति कातराः ॥ ३ ॥
बाला ऊचुरनेनेति तिर्यग्गतं उलूखलम् ।
विकर्षता मध्यगेन पुरुषौ अपि अचक्ष्महि ॥ ४ ॥
न ते तदुक्तं जगृहुः न घटेतेति तस्य तत् ।
बालस्योत्पाटनं तर्वोः केचित् संदिग्धचेतसः ॥ ५ ॥
उलूखलं विकर्षन्तं दाम्ना बद्धं स्वमात्मजम् ।
विलोक्य नन्दः प्रहसद् वदनो विमुमोच ह ॥ ६ ॥
गोपीभिः स्तोभितोऽनृत्यद् भगवान् बालवत् क्वचित् ।
उद्‍गायति क्वचिन्मुग्धः तद्वशो दारुयन्त्रवत् ॥ ७ ॥
बिभर्ति क्वचिदाज्ञप्तः पीठकोन्मानपादुकम् ।
बाहुक्षेपं च कुरुते स्वानां च प्रीतिमावहन् ॥ ८ ॥
दर्शयंस्तद्विदां लोक आत्मनो भृत्यवश्यताम् ।
व्रजस्योवाह वै हर्षं भगवान् बालचेष्टितैः ॥ ९ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! वृक्षोंके गिरनेसे जो भयङ्कर शब्द हुआ था, उसे नन्दबाबा आदि गोपोंने भी सुना । उनके मनमें यह शङ्का हुई कि कहीं बिजली तो नहीं गिरी ! सब-के-सब भयभीत होकर वृक्षोंके पास आ गये ॥ १ ॥ वहाँ पहुँचनेपर उन लोगोंने देखा कि दोनों अर्जुनके वृक्ष गिरे हुए हैं । यद्यपि वृक्ष गिरनेका कारण स्पष्ट थावहीं उनके सामने ही रस्सीमें बँधा हुआ बालक ऊखल खींच रहा था, परंतु वे समझ न सके। यह किसका काम है, ऐसी आश्चर्यजनक दुर्घटना कैसे घट गयी ?’—यह सोचकर वे कातर हो गये, उनकी बुद्धि भ्रमित हो गयी ॥ २-३ ॥ वहाँ कुछ बालक खेल रहे थे । उन्होंने कहा—‘अरे, इसी कन्हैयाका तो काम है । यह दोनों वृक्षोंके बीचमेंसे होकर निकल रहा था । ऊखल तिरछा हो जानेपर दूसरी ओरसे इसने उसे खींचा और वृक्ष गिर पड़े । हमने तो इनमेंसे निकलते हुए दो पुरुष भी देखे हैं. ॥ ४ ॥ परंतु गोपोंने बालकों की बात नहीं मानी । वे कहने लगे—‘एक नन्हा-सा बच्चा इतने बड़े वृक्षों को उखाड़ डाले, यह कभी सम्भव नहीं है ।किसी-किसी के चित्त में श्रीकृष्ण की पहले की लीलाओं का स्मरण करके सन्देह भी हो आया ॥ ५ ॥ नन्दबाबा ने देखा, उनका प्राणोंसे प्यारा बच्चा रस्सी से बँधा हुआ ऊखल घसीटता जा रहा है । वे हँसने लगे और जल्दी से जाकर उन्होंने रस्सी की गाँठ खोल दी ॥ ६ ॥ सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ कभी-कभी गोपियोंके फुसलानेसे साधारण बालकोंके समान नाचने लगते । कभी भोले-भाले अनजान बालककी तरह गाने लगते । वे उनके हाथकी कठपुतलीउनके सर्वथा अधीन हो गये ॥ ७ ॥ कभी उनकी आज्ञासे पीढ़ा ले आते, तो कभी दुसेरी आदि तौलनेके बटखरे उठा लाते । कभी खड़ाऊँ ले आते, तो कभी अपने प्रेमी भक्तों को आनन्दित करने के लिये पहलवानों की भाँति ताल ठोंकने लगते ॥ ८ ॥ इस प्रकार सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ अपनी बाल-लीलाओंसे व्रजवासियोंको आनन्दित करते और संसारमें जो लोग उनके रहस्यको जाननेवाले हैं, उनको यह दिखलाते कि मैं अपने सेवकोंके वशमें हूँ ॥ ९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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