॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०६)
भगवान्
का गर्भ-प्रवेश और देवताओं द्वारा गर्भ-स्तुति
न
तेऽभवस्येश भवस्य कारणं
विना
विनोदं बत तर्कयामहे
भवो
निरोधः स्थितिरप्यविद्यया
कृता
यतस्त्वय्यभयाश्रयात्मनि ॥ ३९ ॥
मत्स्याश्वकच्छपनृसिंहवराहहंस
राजन्यविप्रविबुधेषु
कृतावतारः
त्वं
पासि नस्त्रिभुवनं च यथाधुनेश
भारं
भुवो हर यदूत्तम वन्दनं ते ॥ ४० ॥
दिष्ट्याम्ब
ते कुक्षिगतः परः पुमान्
अंशेन
साक्षाद्भगवान्भवाय नः
माभूद्भयं
भोजपतेर्मुमूर्षोर्
गोप्ता
यदूनां भविता तवात्मजः ॥ ४१ ॥
श्रीशुक
उवाच
इत्यभिष्टूय
पुरुषं यद्रू पमनिदं यथा
ब्रह्मेशानौ
पुरोधाय देवाः प्रतिययुर्दिवम् ॥ ४२ ॥
प्रभो
! आप अजन्मा हैं । यदि आपके जन्मके कारणके सम्बन्धमें हम कोई तर्कना करें, तो यही कह सकते हैं कि यह आपका एक लीला-विनोद है । ऐसा कहनेका कारण यह है
कि आप तो द्वैतके लेशसे रहित सर्वाधिष्ठानस्वरूप हैं और इस जगत्की उत्पत्ति,
स्थिति तथा प्रलय अज्ञानके द्वारा आपमें आरोपित हैं ॥ ३९ ॥ प्रभो !
आपने जैसे अनेकों बार मत्स्य, हयग्रीव, कच्छप, नृसिंह, वराह, हंस, राम, परशुराम और वामन
अवतार धारण करके हमलोगोंकी और तीनों लोकोंकी रक्षा की है—वैसे
ही आप इस बार भी पृथ्वीका भार हरण कीजिये । यदुनन्दन ! हम आपके चरणोंमें वन्दना
करते हैं’ ॥ ४० ॥ [देवकीजीको सम्बोधित करके] ‘माताजी ! यह बड़े सौभाग्यकी बात है कि आपकी कोखमें हम सबका कल्याण करनेके
लिये स्वयं भगवान् पुरुषोत्तम अपने ज्ञान, बल आदि अंशोंके
साथ पधारे हैं । अब आप कंससे तनिक भी मत डरिये । अब तो वह कुछ ही दिनों का मेहमान
है । आपका पुत्र यदुवंश की रक्षा करेगा’ ॥ ४१ ॥
श्रीशुकदेवजी
कहते हैं—परीक्षित् ! ब्रह्मादि देवताओं ने इस प्रकार भगवान् की स्तुति की । उनका
रूप ‘यह है’ इस प्रकार निश्चितरूप से
तो कहा नहीं जा सकता, सब अपनी-अपनी मति के अनुसार उसका
निरूपण करते हैं । इसके बाद ब्रह्मा और शङ्करजी को आगे करके देवगण स्वर्ग में चले
गये ॥ ४२ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां दशमस्कन्धे
गर्भगतिविष्णोर्ब्रह्मादिकृतस्तुतिर्नाम द्वितीयोऽध्यायः
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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