॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान्
श्रीकृष्ण का प्राकट्य
तमद्भुतं
बालकमम्बुजेक्षणं
चतुर्भुजं
शंखगदार्युदायुधम् ।
श्रीवत्सलक्ष्मं
गलशोभि कौस्तुभं
पीताम्बरं
सान्द्रपयोदसौभगम् ॥ ९ ॥
महार्हवैदूर्यकिरीटकुण्डल
त्विषा
परिष्वक्त सहस्रकुन्तलम् ।
उद्दाम
काञ्च्यङ्गद कङ्कणादिभिः
विरोचमानं
वसुदेव ऐक्षत ॥ १० ॥
स
विस्मयोत्फुल्ल विलोचनो हरिं
सुतं
विलोक्यानकदुन्दुभिस्तदा ।
कृष्णावतारोत्सव
संभ्रमोऽस्पृशन्
मुदा
द्विजेभ्योऽयुतमाप्लुतो गवाम् ॥ ११ ॥
अथैनमस्तौदवधार्य
पूरुषं
परं
नताङ्गः कृतधीः कृताञ्जलिः ।
स्वरोचिषा
भारत सूतिकागृहं
विरोचयन्तं
गतभीः प्रभाववित् ॥ १२ ॥
वसुदेवजीने
देखा,
उनके सामने एक अद्भुत बालक है । उसके नेत्र कमलके समान कोमल और
विशाल हैं । चार सुन्दर हाथों में शङ्ख, गदा, चक्र और कमल लिये हुए हैं । वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न—अत्यन्त सुन्दर सुवर्णमयी रेखा है । गलेमें कौस्तुभमणि झिलमिला रही है ।
वर्षाकालीन मेघके समान परम सुन्दर श्यामल शरीरपर मनोहर पीताम्बर फहरा रहा है ।
बहुमूल्य वैदूर्यमणिके किरीट और कुण्डल की कान्ति से सुन्दर-सुन्दर घुँघराले बाल
सूर्य की किरणोंके समान चमक रहे हैं । कमर में चमचमाती करधनी की लडिय़ाँ लटक रही
हैं । बाँहोंमें बाजूबंद और कलाइयोंमें कङ्कण शोभायमान हो रहे हैं । इन सब
आभूषणोंसे सुशोभित बालक के अङ्ग-अङ्गसे अनोखी छटा छिटक रही है ॥ ९-१० ॥ जब
वसुदेवजीने देखा कि मेरे पुत्रके रूपमें तो स्वयं भगवान् ही आये हैं, तब पहले तो उन्हें असीम आश्चर्य हुआ; फिर आनन्दसे
उनकी आँखें खिल उठीं । उनका रोम-रोम परमानन्द में मग्र हो गया । श्रीकृष्णका
जन्मोत्सव मनानेकी उतावलीमें उन्होंने उसी समय ब्राह्मणों के लिये दस हजार गायों का
संकल्प कर दिया ॥ ११ ॥ परीक्षित् ! भगवान् श्रीकृष्ण अपनी अङ्गकान्ति से
सूतिकागृह को जगमग कर रहे थे । जब वसुदेवजीको यह निश्चय हो गया कि ये तो परम पुरुष
परमात्मा ही हैं, तब भगवान् का प्रभाव जान लेनेसे उनका सारा
भय जाता रहा । अपनी बुद्धि स्थिर करके उन्होंने भगवान् के चरणोंमें अपना सिर झुका
दिया और फिर हाथ जोडक़र वे उनकी स्तुति करने लगे— ॥ १२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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