बुधवार, 6 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०७)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥



श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) तीसरा अध्याय..(पोस्ट०७)



भगवान्‌ श्रीकृष्ण का प्राकट्य



त्वत्तोऽस्य जन्मस्थिति संयमान् विभो

वदन्ति अनीहात् अगुणाद् अविक्रियात् ।

त्वयीश्वरे ब्रह्मणि नो विरुध्यते

त्वद् आश्रयत्वाद् उपचर्यते गुणैः ॥ १९ ॥

स त्वं त्रिलोकस्थितये स्वमायया

बिभर्षि शुक्लं खलु वर्णमात्मनः ।

सर्गाय रक्तं रजसोपबृंहितं

कृष्णं च वर्णं तमसा जनात्यये ॥ २० ॥

त्वमस्य लोकस्य विभो रिरक्षिषुः

गृहेऽवतीर्णोऽसि ममाखिलेश्वर ।

राजन्य संज्ञासुरकोटि यूथपैः

निर्व्यूह्यमाना निहनिष्यसे चमूः ॥ २१ ॥

अयं त्वसभ्यस्तव जन्म नौ गृहे

श्रुत्वाग्रजांस्ते न्यवधीत् सुरेश्वर ।

स तेऽवतारं पुरुषैः समर्पितं

श्रुत्वाधुनैव अभिसरत्युदायुधः ॥ २२ ॥



प्रभो ! कहते हैं कि आप स्वयं समस्त क्रियाओं, गुणों और विकारोंसे रहित हैं । फिर भी इस जगत् की सृष्टि, स्थिति और प्रलय आपसे ही होते हैं । यह बात परम ऐश्वर्यशाली परब्रह्म परमात्मा आपके लिये असंगत नहीं है । क्योंकि तीनों गुणोंके आश्रय आप ही हैं, इसलिये उन गुणोंके कार्य आदिका आपमें ही आरोप किया जाता है ॥ १९ ॥ आप ही तीनों लोकोंकी रक्षा करनेके लिये अपनी मायासे सत्त्वमय शुक्लवर्ण (पोषणकारी विष्णुरूप) धारण करते हैं, उत्पत्तिके लिये रज:प्रधान रक्तवर्ण (सृजनकारी ब्रह्मारूप) और प्रलयके समय तमोगुणप्रधान कृष्णवर्ण (संहारकारी रुद्ररूप) स्वीकार करते हैं ॥ २० ॥ प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी हैं । इस संसारकी रक्षाके लिये ही आपने मेरे घर अवतार लिया है । आजकल कोटि-कोटि असुर सेनापतियोंने राजाका नाम धारण कर रखा है और अपने अधीन बड़ी-बड़ी सेनाएँ कर रखी हैं । आप उन सबका संहार करेंगे ॥ २१ ॥ देवताओंके भी आराध्यदेव प्रभो ! यह कंस बड़ा दुष्ट है । इसे जब मालूम हुआ कि आपका अवतार हमारे घर होनेवाला है, तब उसने आपके भयसे आपके बड़े भाइयोंको मार डाला । अभी उसके दूत आपके अवतारका समाचार उसे सुनायेंगे और वह अभी-अभी हाथमें शस्त्र लेकर दौड़ा आयेगा ॥ २२ ॥



शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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