॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०७)
भगवान्
श्रीकृष्ण का प्राकट्य
त्वत्तोऽस्य
जन्मस्थिति संयमान् विभो
वदन्ति
अनीहात् अगुणाद् अविक्रियात् ।
त्वयीश्वरे
ब्रह्मणि नो विरुध्यते
त्वद्
आश्रयत्वाद् उपचर्यते गुणैः ॥ १९ ॥
स
त्वं त्रिलोकस्थितये स्वमायया
बिभर्षि
शुक्लं खलु वर्णमात्मनः ।
सर्गाय
रक्तं रजसोपबृंहितं
कृष्णं
च वर्णं तमसा जनात्यये ॥ २० ॥
त्वमस्य
लोकस्य विभो रिरक्षिषुः
गृहेऽवतीर्णोऽसि
ममाखिलेश्वर ।
राजन्य
संज्ञासुरकोटि यूथपैः
निर्व्यूह्यमाना
निहनिष्यसे चमूः ॥ २१ ॥
अयं
त्वसभ्यस्तव जन्म नौ गृहे
श्रुत्वाग्रजांस्ते
न्यवधीत् सुरेश्वर ।
स
तेऽवतारं पुरुषैः समर्पितं
श्रुत्वाधुनैव
अभिसरत्युदायुधः ॥ २२ ॥
प्रभो
! कहते हैं कि आप स्वयं समस्त क्रियाओं, गुणों और विकारोंसे
रहित हैं । फिर भी इस जगत् की सृष्टि, स्थिति और प्रलय आपसे
ही होते हैं । यह बात परम ऐश्वर्यशाली परब्रह्म परमात्मा आपके लिये असंगत नहीं है
। क्योंकि तीनों गुणोंके आश्रय आप ही हैं, इसलिये उन गुणोंके
कार्य आदिका आपमें ही आरोप किया जाता है ॥ १९ ॥ आप ही तीनों लोकोंकी रक्षा करनेके
लिये अपनी मायासे सत्त्वमय शुक्लवर्ण (पोषणकारी विष्णुरूप) धारण करते हैं, उत्पत्तिके लिये रज:प्रधान रक्तवर्ण (सृजनकारी ब्रह्मारूप) और प्रलयके समय
तमोगुणप्रधान कृष्णवर्ण (संहारकारी रुद्ररूप) स्वीकार करते हैं ॥ २० ॥ प्रभो ! आप
सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी हैं । इस संसारकी रक्षाके लिये ही आपने मेरे घर
अवतार लिया है । आजकल कोटि-कोटि असुर सेनापतियोंने राजाका नाम धारण कर रखा है और
अपने अधीन बड़ी-बड़ी सेनाएँ कर रखी हैं । आप उन सबका संहार करेंगे ॥ २१ ॥
देवताओंके भी आराध्यदेव प्रभो ! यह कंस बड़ा दुष्ट है । इसे जब मालूम हुआ कि आपका
अवतार हमारे घर होनेवाला है, तब उसने आपके भयसे आपके बड़े भाइयोंको
मार डाला । अभी उसके दूत आपके अवतारका समाचार उसे सुनायेंगे और वह अभी-अभी हाथमें
शस्त्र लेकर दौड़ा आयेगा ॥ २२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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