सोमवार, 25 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

श्रीकृष्ण का ऊखल से बाँधा जाना

तां स्तन्यकाम आसाद्य मथ्नन्तीं जननीं हरिः ।
गृहीत्वा दधिमन्थानं न्यषेधत्प्रीतिमावहन् ॥ ४ ॥
तमङ्‌कमारूढमपाययत् स्तनं
स्नेहस्नुतं सस्मितमीक्षती मुखम् ।
अतृप्तमुत्सृज्य जवेन सा ययौ
उत्सिच्यमाने पयसि त्वधिश्रिते ॥ ५ ॥
सञ्जातकोपः स्फुरितारुणाधरं
सन्दश्य दद्‌भिर्दधिमन्थभाजनम् ।
भित्त्वा मृषाश्रुर्दृषदश्मना रहो
जघास हैयङ्‌गवमन्तरं गतः ॥ ६ ॥

उसी समय भगवान्‌ श्रीकृष्ण स्तन पीनेके लिये दही मथती हुई अपनी माताके पास आये । उन्होंने अपनी माताके हृदयमें प्रेम और आनन्दको और भी बढ़ाते हुए दहीकी मथानी पकड़ ली तथा उन्हें मथनेसे रोक दिया[4] ॥ ४ ॥ श्रीकृष्ण माता यशोदाकी गोदमें चढ़ गये । वात्सल्य-स्नेहकी अधिकतासे उनके स्तनोंसे दूध तो स्वयं झर ही रहा था । वे उन्हें पिलाने लगीं । और मन्द-मन्द मुसकानसे युक्त उनका मुख देखने लगीं । इतनेमें ही दूसरी ओर अँगीठीपर रखे हुए दूधमें उफान आया । उसे देखकर यशोदाजी उन्हें अतृप्त ही छोडक़र जल्दीसे दूध उतारनेके लिये चली गयीं[5] ॥ ५ ॥ इससे श्रीकृष्णको कुछ क्रोध आ गया। उनके लाल-लाल होठ फडक़ने लगे। उन्हें दाँतोंसे दबाकर श्रीकृष्णने पास ही पड़े हुए लोढ़ेसे दहीका मटका फोड़-फाड़ डाला, बनावटी आँसू आँखोंमें भर लिये और दूसरे घरमें जाकर अकेलेमें बासी माखन खाने लगे[6] ॥ ६ ॥
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[4] हृदयमें लीलाकी सुखस्मृति, हाथोंसे दधिमन्थन और मुखसे लीलागानइस प्रकार मन, तन, वचन तीनोंका श्रीकृष्णके साथ एकतान संयोग होते ही श्रीकृष्ण जगकर मा-मापुकारने लगे । अबतक भगवान्‌ श्रीकृष्ण सोये हुए-से थे । माकी स्नेह-साधनाने उन्हें जगा दिया । वे निर्गुणसे सगुण हुए, अचलसे चल हुए, निष्कामसे सकाम हुए; स्नेहके भूखे-प्यासे माके पास आये । क्या ही सुन्दर नाम है—‘स्तन्यकाम’ ! मन्थन करते समय आये, बैठी-ठालीके पास नहीं ।

सर्वत्र भगवान्‌ साधनकी प्रेरणा देते हैं, अपनी ओर आकृष्ट करते हैं; परंतु मथानी पकडक़र मैयाको रोक लिया । मा ! अब तेरी साधना पूर्ण हो गयी । पिष्ट-पेषण करनेसे क्या लाभ ? अब मैं तेरी साधनाका इससे अधिक भार नहीं सह सकता ।मा प्रेमसे दब गयीनिहाल हो गयीमेरा लाला मुझे इतना चाहता है ।

[5] मैया मना करती रही—‘नेक-सा माखन तो निकाल लेने दे ।’ ‘ऊँ-ऊँ-ऊँ, मैं तो दूध पीऊँगा’—दोनों हाथोंसे मैयाकी कमर पकडक़र एक पाँव घुटनेपर रखा और गोदमें चढ़ गये । स्तनका दूध बरस पड़ा । मैया दूध पिलाने लगी, लाला मुसकराने लगे, आँखें मुसकानपर जम गयीं । ईक्षतीपदका यह अभिप्राय है कि जब लाला मुँह उठाकर देखेगा और मेरी आँखें उसपर लगी मिलेंगी, तब उसे बड़ा सुख होगा ।

सामने पद्मगन्धा गायका दूध गरम हो रहा था । उसने सोचा—‘स्नेहमयी मा यशोदाका दूध कभी कम न होगा, श्यामसुन्दरकी प्यास कभी बुझेगी नहीं ! उनमें परस्पर होड़ लगी है । मैं बेचारा युग-युगका, जन्म-जन्मका श्यामसुन्दरके होठोंका स्पर्श करनेके लिये व्याकुल तप-तपकर मर रहा हूँ । अब इस जीवनसे क्या लाभ जो श्रीकृष्णके काम न आवे । इससे अच्छा है उनकी आँखोंके सामने आगमें कूद पडऩा ।माके नेत्र पहुँच गये । दयाद्र्र माको श्रीकृष्णका भी ध्यान न रहा; उन्हें एक ओर डालकर दौड़ पड़ी । भक्त भगवान्‌को एक ओर रखकर भी दुखियोंकी रक्षा करते हैं । भगवान्‌ अतृप्त ही रह गये । क्या भक्तोंके हृदय-रससे, स्नेहसे उन्हें कभी तृप्ति हो सकती है ? उसी दिनसे उनका एक नाम हुआ—‘अतृप्त

[6] श्रीकृष्णके होठ फडक़े । क्रोध होठोंका स्पर्श पाकर कृतार्थ हो गया । लाल-लाल होठ श्वेत-श्वेत दूधकी दँतुलियोंसे दबा दिये गये, मानो सत्त्वगुण रजोगुणपर शासन कर रहा हो, ब्राह्मण क्षत्रियको शिक्षा दे रहा हो । वह क्रोध उतरा दधिमन्थनके मटकेपर । उसमें एक असुर आ बैठा था । दम्भने कहाकाम, क्रोध और अतृप्तिके बाद मेरी बारी है । वह आँसू बनकर आँखोंमें छलक आया । श्रीकृष्ण अपने भक्तजनोंके प्रति अपनी ममताकी धारा उड़ेलनेके लिये क्या-क्या भाव नहीं अपनाते ? ये काम, क्रोध, लोभ और दम्भ भी आज ब्रह्म-संस्पर्श प्राप्त करके धन्य हो गये ! श्रीकृष्ण घरमें घुसकर बासी मक्खन गटकने लगे, मानो माको दिखा रहे हों कि मैं कितना भूखा हूँ ।

प्रेमी भक्तोंके पुरुषार्थभगवान्‌ नहीं हैं, भगवान्‌ की सेवा है । ये भगवान्‌ की सेवा के लिये भगवान्‌ का भी त्याग कर सकते हैं । मैया के अपने हाथों दुहा हुआ यह पद्मगन्धा गायों का दूध श्रीकृष्ण के लिये ही गरम हो रहा था । थोड़ी देरके बाद ही उनको पिलाना था । दूध उफन जायगा तो मेरे लाला भूखे रहेंगेरोयेंगे, इसीलिये माता ने उन्हें नीचे उतारकर दूध को सँभाला ।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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