शनिवार, 9 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)

कंस के हाथ से छूटकर योगमाया का
आकाश में जाकर भविष्यवाणी करना

श्रीशुक उवाच ।
बहिरन्तःपुरद्वारः सर्वाः पूर्ववदावृताः ।
ततो बालध्वनिं श्रुत्वा गृहपालाः समुत्थिताः ॥ १ ॥
ते तु तूर्णं उपव्रज्य देवक्या गर्भजन्म तत् ।
आचख्युः भोजराजाय यदुद्विग्नः प्रतीक्षते ॥ २ ॥
स तल्पात् तूर्णमुत्थाय कालोऽयमिति विह्वलः ।
सूतीगृहं अगात् तूर्णं प्रस्खलन् मुक्तमूर्धजः ॥ ३ ॥
तं आह भ्रातरं देवी कृपणा करुणं सती ।
स्नुषेयं तव कल्याण स्त्रियं मा हन्तुमर्हसि ॥ ४ ॥
बहवो हिंसिता भ्रातः शिशवः पावकोपमाः ।
त्वया दैवनिसृष्टेन पुत्रिकैका प्रदीयताम् ॥ ५ ॥
नन्वहं ते ह्यवरजा दीना हतसुता प्रभो ।
दातुमर्हसि मन्दाया अङ्‌गेमां चरमां प्रजाम् ॥ ६ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जब वसुदेवजी लौट आये, तब नगरके बाहरी और भीतरी सब दरवाजे अपने-आप ही पहलेकी तरह बंद हो गये । इसके बाद नवजात शिशु के रोने की ध्वनि सुनकर द्वारपालोंकी नींद टूटी ॥ १ ॥ वे तुरंत भोजराज कंसके पास गये और देवकी को सन्तान होनेकी बात कही । कंस तो बड़ी आकुलता और घबराहटके साथ इसी बातकी प्रतीक्षा कर रहा था ॥ २ ॥ द्वारपालोंकी बात सुनते ही वह झटपट पलँग से उठ खड़ा हुआ और बड़ी शीघ्रतासे सूतिकागृहकी ओर झपटा । इस बार तो मेरे कालका ही जन्म हुआ है, यह सोचकर वह विह्वल हो रहा था और यही कारण है कि उसे इस बातका भी ध्यान न रहा कि उसके बाल बिखरे हुए हैं । रास्तेमें कई जगह वह लडख़ड़ाकर गिरते-गिरते बचा ॥ ३ ॥ बंदीगृहमें पहुँचनेपर सती देवकीने बड़े दु:ख और करुणाके साथ अपने भाई कंससे कहा—‘मेरे हितैषी भाई ! यह कन्या तो तुम्हारी पुत्रवधू के समान है । स्त्रीजाति की है; तुम्हें स्त्रीकी हत्या कदापि नहीं करनी चाहिये ॥ ४ ॥ भैया ! तुमने दैववश मेरे बहुतसे अग्नि के समान तेजस्वी बालक मार डाले । अब केवल यही एक कन्या बची है, इसे तो मुझे दे दो ॥ ५ ॥ अवश्य ही मैं तुम्हारी छोटी बहिन हूँ । मेरे बहुत से बच्चे मर गये हैं, इसलिये मैं अत्यन्त दीन हूँ । मेरे प्यारे और समर्थ भाई ! तुम मुझ मन्दभागिनी को यह अन्तिम सन्तान अवश्य दे दो॥ ६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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