गुरुवार, 7 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) तीसरा अध्याय..(पोस्ट०९)

भगवान्‌ श्रीकृष्ण का प्राकट्य
स त्वं घोरात् उग्रसेनात्मजात् नः
त्राहि त्रस्तान् भृत्यवित्रासहासि ।
रूपं चेदं पौरुषं ध्यानधिष्ण्यं
मा प्रत्यक्षं मांसदृशां कृषीष्ठाः ॥ २८ ॥

जन्म ते मय्यसौ पापो मा विद्यात् मधुसूदन ।
समुद्विजे भवद्धेतोः कंसाद् अहमधीरधीः ॥ २९ ॥
उपसंहर विश्वात्मन् अदो रूपं अलौकिकम् ।
शंखचक्रगदापद्म श्रिया जुष्टं चतुर्भुजम् ॥ ३० ॥
विश्वं यदेतत् स्वतनौ निशान्ते
यथावकाशं पुरुषः परो भवान् ।
बिभर्ति सोऽयं मम गर्भगो अभूद्
अहो नृलोकस्य विडंबनं हि तत् ॥ ३१ ॥


प्रभो ! आप हैं भक्तभयहारी । और हमलोग इस दुष्ट कंससे बहुत ही भयभीत हैं । अत: आप हमारी रक्षा कीजिये । आपका यह चतुर्भुज दिव्यरूप ध्यानकी वस्तु है । इसे केवल मांस-मज्जामय शरीरपर ही दृष्टि रखनेवाले देहाभिमानी पुरुषोंके सामने प्रकट मत कीजिये ॥ २८ ॥ मधुसूदन ! इस पापी कंसको यह बात मालूम न हो कि आपका जन्म मेरे गर्भसे हुआ है । मेरा धैर्य टूट रहा है । आपके लिये मैं कंससे बहुत डर रही हूँ ॥ २९ ॥ विश्वात्मन् ! आपका यह रूप अलौकिक है । आप शङ्ख, चक्र, गदा और कमलकी शोभासे युक्त अपना यह चतुर्भुजरूप छिपा लीजिये ॥ ३० ॥ प्रलयके समय आप इस सम्पूर्ण विश्वको अपने शरीरमें वैसे ही स्वाभाविक रूपसे धारण करते हैं, जैसे कोई मनुष्य अपने शरीरमें रहनेवाले छिद्ररूप आकाशको । वही परम पुरुष परमात्मा आप मेरे गर्भवासी हुए, यह आपकी अद्भुत मनुष्य-लीला नहीं तो और क्या है ? ॥ ३१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




1 टिप्पणी:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...